श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
27. वज्रनाभ-वध
पिता की आज्ञा प्रद्युम्न ने स्वीकार की। यादव तरुणों में-से कुछ प्रमुख वीरों को साथ लिया। नटवेश में यह समुदाय वज्रपुर पहुँचा। नाट्य की सुविधा के लिए कुछ कला-कुशल गन्धर्व-कन्याएँ देवराज ने साथ दे दीं। वज्रनाभ ने नटों के इस समुदाय का स्वागत किया। इन लोगों को उसने वज्रपुर-के उपनगर सुपुर में आवास दिया। इनका भली प्रकार सत्कार करके रत्नों की भेंट की। प्रद्युम्न श्रीराम हैं या नहीं, और गद लक्ष्मण से कुछ भिन्न हैं, यह निर्णय तो सुर भी नहीं कर सकते थे; फिर इन दैत्यों ने जब उन मर्यादा पुरुषोत्तम को देखा था- उसमें काल का बहुत बड़ा अन्तर था। वज्रनाभ को बहुत उलाहन मिला। दैत्य-दानवों के अन्तःपुर की महिलाएँ तो उपनगर सुपुर में जा नहीं सकती थीं; अतः उनका आग्रह वज्रनाभ को मानना पड़ा। नटों के पूरे समुदाय को वज्रपुर के भीतर आवास देना पड़ा और अभिनय की सुविधा भी। उत्तम भवनों में वे ठहराये गये। प्रथम रात्रि ही नटों ने वहाँ 'रम्भाभिसार' अभिनीत किया। सभी नर-नारी विमुग्ध हो उठे। मैं द्वारिका गयी थी। साक्षान्नारायण के पुत्र प्रद्युम्न के मैंने दर्शन किये। तुम्हारे रूप, गुण और उनके प्रति तुम्हारी भक्ति का मैंने वर्णन किया।' हंसिनी ने राजकुमारी प्रभावती से मिलकर कहा- 'वे आज ही प्रदोषकाल में तुमसे मिलेंगे।' 'सच सखि? इस वज्रपुर में वे आज पधारेंगे? यहाँ उनका प्रवेश......?' 'एवमस्तु।' हंसिनी ने वरदान देने जैसी भंगी में कह दिया और प्रभावती अपने भवन को, कक्ष को सुसज्जित करने में लग गयी। उसने कोना-कोना स्वच्छ किया।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज