श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
1. अपनी बात
‘भगवान वासुदेव’ से प्रारम्भ करके यह ‘श्रीद्वारिकाधीश’ और आगे ‘पार्थ-सारथी’ लिखने में मैं ही क्यों प्रवृत्त हुआ? जबकि भक्तों के सर्वस्व ‘नन्दनन्दन’ हैं और श्रीकृष्ण का लोकनायक रूप या ‘योगेश्वर’ रूप मुझे लेना नहीं है। यह प्रश्न मैं अपने आपसे करूँ या आप मुझसे करें, बात एक ही है। लोकनायक-राष्ट्रपुरुष श्रीकृष्ण हैं और परिपूर्ण रूप से हैं। ये योगेश्वर ही नहीं योगेश्वरेश्वर हैं, किन्तु आपको लोकादर्श चाहिये तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र ‘श्रीरामचरितमानस’ में है। यदि उपदेश चाहिए तो गीता और भागवत के एकादश स्कन्ध पर टीका, भाष्य, व्याख्याओं का अभाव नहीं है। यह चरित तो मैं अपने लिये, अपने मनसंतोष के लिये, अपने अन्तःकरण की शुद्धि के लिये ही लिखने चला हूँ। भगवान के नाम, रूप, गुण, लीला एवं उनके परिकरों का स्मरण-चिंतन हृदय को पवित्र करता है, मानस-मल को दूर करता है, यह बात शास्त्र, संत, सत्पुरुष सब कहते है। अतः मैं अपने लिये और अपने समान उद्देशीय जनों के लिये भी इस भगवच्चरित का स्मरण कर रहा हूँ। इस चरित की सार्थकता अमुक-अमुक शिक्षा देने में नहीं है, भले ही इससे शिक्षा भी यत्र-तत्र मिलती हो। इसकी सार्थकता श्रीकृष्ण-भगवान वासुदेव के दिव्य मंगलमय चरितों के स्मरण में ही है। चरितों का जो क्रम मैंने लिया, उसमें एक कठिनाई है एक चरित दो भागों में बटेंगे। जैसे- ‘भगवान वासुदेव’ में मथुरा-चरित देना था। उद्धव मथुरा से ब्रज गये और लौटकर मथुरा आये, इतना ही आया है इस खण्ड में। ब्रज में उद्धव ने क्या किया, यह ‘नन्दनन्दन’ में आता है। इसी प्रकार कंस के भेजे जो असुर ब्रज गये, उनका नामोल्लेख मात्र हुआ। यह स्थिति ‘श्रीद्वारिकाधीश’ एवं ‘पार्थ-सारथि’ में कई प्रसंगों में है। जैसे युधिष्ठिर के राजसूय के लिये प्रस्थान एवं लौटकर शाल्व (सौभ) वध इस भाग में किन्तु राजसूय-यज्ञ का वर्णन ‘पार्थ-सारथि’ में। हरिवंश तथा गर्गसंहिता की कथाओं को क्रम देने में भी बहुत सिर खपाना पड़ा है। कुछ चरित ऐसे हैं कि उनके विषय में ग्रन्थों में बहुत विवादास्पद बातें हैं। उनमें से कथा का क्रम और रूप लेने में भगवान के स्वरूप, मर्यादा संभावना तथा श्रीमद्भागवत को मुख्य माना है। जैसे- ‘स्वयं च कृष्णया राजन् भगिन्या चाभिवन्दितः।’[1] इसका अर्थ है कि उससे पूर्व ही सुभद्रा जी इन्द्रप्रस्थ पहुँच चुकी हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10. 71. 41
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज