शाप

शाप का अभिप्राय क्रोधपूर्वक किसी के अनिष्ट का उदघोष करना कहलाता है। विशेषकर ऋषि, मुनि, तपस्वी आदि के अनिष्ट शब्दों को 'शाप' कहते हैं।

  • किसी महान नैतिक अपराध के हो जाने पर शाप दिया जाता था। इसके अनेक उदाहरण प्राचीन साहित्य में उपलब्ध हैं।
  • महाभारत में कर्ण को उसके गुरु परशुराम और पृथ्वी माता से शाप मिला था कि 'जब भी कर्ण को उनकी दी हुई शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, उस दिन वह उसके काम नहीं आएगी।'


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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