वैदूर्य पर्वत

वैदूर्य पर्वत का उल्लेख महाभारत, वनपर्व में धौम्य मुनि द्वारा वर्णित तीर्थों में है-

'वैदूर्यशिखरो नाम पुण्यो गिरवरः शिवः, नित्यपुष्पफलास्तत्र पादपाहरितच्छदाः, तस्य शैलस्य शिखरे सरः पुण्यं महीपते, फुल्लपद्मं महाराज देवगंधर्वसेवितम्।'[1]
  • उपरोक्त प्रसंग में नर्मदा नदी का वर्णन है, जिसके कारण वैदूर्य शिखर का भेड़ाघाट के समीप स्थित संगमरमर की चट्टानों वाली पर्वतमाला से अभिज्ञान किया जा सकता है।[2]
  • 'वैदूर्य' या 'बिल्लोर' शब्द श्वेत संगमरमर के लिए प्राचीन साहित्य में प्रयुक्त हुआ है।
  • उपर्युक्त उद्धरण में वैदूर्य शिखिर पर जिस सरोवर का वर्णन है, वह शायद नर्मदा की वह गहरी झील है, जो इन पहाड़ियों के बीच में नदी प्रवाह के रुक जाने से बन गई है।
  • महाभारत वनपर्व[3] में भी वैदूर्य पर्वत का नर्मदा और पयोष्णी नदियों के संबंध में वर्णन है-
'स पयोष्णयां नरश्रेष्ठः स्नात्वा वै भ्रातृभिः सह, वैदूर्य पर्वतं चैव नर्मदां च महानदीम्। देवानामेति कौंतेय यश राजा सलोकताम्, वैदूर्य पर्वतं दृष्ट्वा नर्मदामवतीर्य च।'
  • वैदूर्य पर्वत को महाहिमवंत के आठ शिखरों में से एक बताया गया है, जिसका उल्लेख जैन ग्रंथ 'जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति' में है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत वनपर्व 89, 6-7
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 879 |
  3. वनपर्व 121,16-19

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