विरह-पदावली -सूरदास
(78) (सूरदास जी के शब्दों में माता यशोदा कहती हैं-) ‘पथिक! श्यामसुन्दर समझाकर कहना- मोहन! यदि वह (माता का) सम्बन्ध नहीं मानते तो मुझे अपनी धाय (पालिका) ही मान लो। एक बार मक्खन के लिये मैंने तुम्हें बाँध रखा था, मोहन! उसका दुःख मत मानना। मुझे तुम्हारी सब विपत्तियाँ लग जायँ।’ बार-बार यही (उलाहने की) धुन उन्हें लगी थी और (यह कहते-कहते) उन्होंने पथिक के पैर पकड़ लिये (तथा फिर कहने लगीं,) तुम्हीं जाकर कहो- ‘मोहन! माता को मुख दिखलाकर उसके प्राण रख लो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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