वंधू करियौ राज सँभारे -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू
रामोपदेश, भरत-प्रति


 
वंधू करियौ राज सँभारे।
राजनीति अरु गुरु की सेवा, गाइ-बिप्र प्रतिपारे।
कौसल्या -कैकई-सुमित्रा-दरसन साँझ - सवारे।
गुरु वसिष्ट अरु मिलि सुमंत सौं, परजा-हेतु विचारे।
भरत गात सीतल ह्वै आयौ, नैन उमँगि जल ढारे।
सूरदास प्रभु दई पाँवरी, अवधपुरी पग धारे॥54॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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