लाल उनीदे लोइननि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


लाल उनीदे लोइननि, आलस भरि आए।
अरुझि काम की बेलि, सौं कौनै बिरमाए।।
सिथिल पाग दस्तार की, जावक रँग भीने।
पाइ परे, अपबस करे, तब सरबस दीने।।
लाली मेरे, लाल की, सब ही तन ढीले।
लाली लै लालन गए, आए मुख पीले।।
बिनु गुन माल हियै लगै, पिय प्रीति निसानी।
सखि रसाल हमकौ दई, तुम देहु बिरानी।।
पग डगमग इत कौं, धरौ उत कीं दृग धाए।
हम अंतर अंतर बसै, पिय सो मन भाए।।
उलटि तहाँ पग धारियै, जासौं मन मान्यौ।
छपद कंज तजि बेलि सौ, लटि प्रेम न मान्यौ।।
तब हँसि बोले स्याम जू, तुम तै को प्यारी।
तुम बिनु कल मोकौ नही, अतिही सुखकारी।।
बचन चतुरई छाँडियै, कहँ तै पढ़ि आए।
'सूर' स्याम गुन रासि हौ नीकै प्रगटाए।।2512।।

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