विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 3रास के हेतु, स्वरूप और काल
भगवानपि ता रात्री: शरदोत्फुल्लिमल्लिका: । अच्छा! ‘भगवानपि ता रात्रीः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः’ भगवान ने रास-विलास का संकल्प लिया। तो पहली बात देखो- बाल-धर्म का पालन कर रहे हैं भगवान। जैसे छोटे- छोटे बालक आपस में नाचते हैं, गाते हैं, खेलते हैं तो जब भगवान अवतार लेकर आये तो बाल-धर्म का पालन करना उनका स्वभाव है। बालक बनें और ‘ताताथेई’ न करें, ऐसा नहीं होता। बचपन में भाई! सब बालक नाचते हैं, माताएं नचाती हैं। हम भी नाचें हैं। हमको याद है हमको भी दही मथने के बाद जो कमोरी में माखन चिपका रह जाता है- दहेंड़ी में- से जो निकलती है मलाई- वह सब मिलती थी जब नाचते थे। तो यह नाचना, गाना, बजाना यह तो बालक का स्वभाव है। जब भगवान बालक रूप में आये तो बालक धर्म का पालन करना स्वाभाविक है। जब भगवान बालक रूप में आये तो बालक- धर्म का पालन करना स्वाभाविक है। नन्हीं-नन्हीं लड़कियों के साथ बालक बनकर स्वयं भगवान नाचते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भाग. 10.29.1
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