विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 25गोपियों का समर्पण-पक्ष
जो उपसनासंबंधी, भक्तिसंबंधी, प्रेमसंबंधी मंत्र हैं उन मंत्रों के लिए श्रीकृष्ण का ध्यान बताया जाता है : कृष्ण खड़े हैं- त्रिभंगललितभाव से- माने बांके बिहारी के रूप में, बाँयें पाँव पर दाहना पाँव रखकर, घुटने टेढ़े, कमर थोड़ी टेढ़ी, सिर थोड़ा टेढ़ा, और बाँसुरी अधरों पर लगाकर, मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए, प्रेमभरी चितवन से देखते हुए; भाल पर गोरोचन का तिलक; और गोपिया जो हैं छटपटा रही हैं, मन ही मन कृष्ण से मिलने के लिए। यह जो गोपियों के छटपटाने का ध्यान है, तड़पने और व्याकुल होने का जो ध्यान है, यह ध्यान जब कोई प्रेमी भक्त गोपियों सरीखा प्रेम होवे, इसका उपाय है कि गोपियों के हृदय में जो श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्याकुलता है उस व्याकुलता का हम ध्यान करें- स्मरे वृन्दावने म्ये गोपगोभिः समावृतम्। गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं गोपकन्यासहस्रशः।। सबकी आँखरूपी भ्रमर श्रीकृष्ण की ओर दौड़ रही हैं, एक-एक गोपी कृष्ण की ओर देख रही हैं, गोरी भी काली भी; और गेहुँए रंग की सी जो गोपी है वे भी श्रीकृष्ण की ओर देख रही हैं; पीली साड़ीवाली, नीली साड़ीवाली लाल ओढ़नी वाली, लहँगे वाली, ये सबकी सब; जिसके बाल खुले हैं वह भी और जिसके बाल में फूल लगे वह भी चारों ओर गोपी खड़ी हैं श्रीकृष्ण से मिलने के लिए और देखो कि एक-एक गोपी मिलने के लिए ललक रही है। नारायण! असल में ध्यान में आपका मन अनेक रूप धारण करके श्रीकृष्ण से मिलने के लिए व्याकुल हो रहा है। ध्यान का अभिप्राय हुआ कि आपके मन को श्रीकृष्ण के लिए व्याकुल होने का अभ्यास हो जायेगा, आपके मन में श्रीकृष्ण की प्राप्ति की इच्छा हो जायेगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 10.29, 31-32
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