विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 18विकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है
रासलीला के संबंध में राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रश्न उठाया। शुकदेव जी ने कहा यदि भक्त के हृदय में श्रीकृष्ण से मिलने की हार्दिक व्याकुलता हो और प्रेम पूर्वक ध्यान हो, तो शरीर का एक-एक कण बदलकर भौतिक से दिव्य हो जाता है, लौकिक से अलौकिक हो जाता है, आधिभौतिक देह की जगह आतिवाहिक देह की प्राप्ति हो जाती है और मंगलमय, दिव्यमय होकर भगवाने के उपभोगयोग्य शरीर प्राप्त कर वह उनकी लीला में प्रविष्ट हो जाता है। भगवान् के प्रेमपूर्वक ध्यान में बड़ी शक्ति है। राजा परीक्षित ने शंका की कि भगवान् का आदरभाव ज्ञान से होता है या भक्ति से होता है और गोपियों को न तो ज्ञान था और न तो ईश्वर की जैसी भक्ति होनी चाहिए वैसी भक्ति थी, ऐश्वर्य ज्ञानपूर्वक तो भक्ति नहीं थी, पहचानती नहीं थी गोपियों कि ईश्वर है; या भक्ति से होता है और गोपियों को न तो ज्ञान था और न तो ईश्वर की जैसी भक्ति होनी चाहिए वैसी भक्ति थी, ऐश्वर्य ज्ञानपूर्वक तो भक्ति नहीं थी, पहचानती नहीं थी गोपियाँ कि ईश्वर है; उल्टे उनको अपना यार समझती थीं। फिर दोनों के बिना जो गोपियों को गुणप्रवाहोपरम वह कैसे हुआ? वह जो गोपियों के शरीर में प्रकृति के गुणों का प्रवाह बन्द हो गया और भगवत् प्रवाह का आविर्भाव हो गया-बिना ज्ञान के, बिना भक्ति के, वह कैसे हो गया? प्रेम करने भर से उनको भगवान् की प्राप्ति कैस हो गयी? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत 10.29.13-17
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