राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 90

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरास-लीला

मंगलाचरण

(श्लोक)

कदा रासे प्रेमोन्मदरसविलासेऽद्भुतमये
दिशोर्मध्ये भ्रजन्मधुपतिसखीवृन्दवलये।
मुदान्तः कान्तेन स्वरचितमहालास्यकलया
निषेवे नृत्यन्तीं व्यजननवताम्बूलशकलैः।।

अर्थ- प्रेमोन्मद रस-विलास सौं पूरित अत्यंत अद्भुत रास, जामे मधुपति श्रीलालजी के चार्यो और गोपीजन ऐसी सोभित है रही हैं जैसें कंकण। या रास में श्रीराधा प्रफुल्लित चित् सौं अपने कान्त श्रीलालजी के संग स्वरचित लास्य कला पूर्वक नृत्य करि रही हैं। मैं कब व्यजन एवं नवताम्बूल खण्ड सौं उनकी सेवा करूँगी?
(महर्षि आसुरि एवं श्रीमहादेवजी को संवाद)
(शंकरजी कैलास पर ध्यान धरते भये)
शंकरजी- (स्वगत) हैं! आज भगवान् मेरे ध्यान में नहीं आवैं हैं, सो कहा कारन है? हाँ, ठीक है। आज श्रीकृष्णचंद्र महारास करैंगे, सो मैं श्रीबृंदाबन चलि कैं दरसन कौ सौभाग्य प्राप्त करूँ।
(महर्षि आसुरि कौ आगमन)
आसुरिजी- हे स्वामिन्! मैं तो आपके दरसन करिबे आयौ, परंतु आप कहाँ पधारि रहे हौ?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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