श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरास-लीला
(श्लोक)
अर्थ- प्रेमोन्मद रस-विलास सौं पूरित अत्यंत अद्भुत रास, जामे मधुपति श्रीलालजी के चार्यो और गोपीजन ऐसी सोभित है रही हैं जैसें कंकण। या रास में श्रीराधा प्रफुल्लित चित् सौं अपने कान्त श्रीलालजी के संग स्वरचित लास्य कला पूर्वक नृत्य करि रही हैं। मैं कब व्यजन एवं नवताम्बूल खण्ड सौं उनकी सेवा करूँगी? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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