राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 48

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीकृष्णप्रवचनगोपी-प्रेम

(पद)

गोपी प्रेम की धुजा ।
जिन गोपाल किये बस अपने, उर धरि स्याम भुजा।।
सुक मुनि ब्यास प्रसंसा कीनी, उद्धव संत सराहीं।
भूरि भाग गोकुल की बनिता अति पुनीत भव माँहीं।

(दोहा)

ब्रज-गोपिन के प्रेम की बँधी धुजा अति दूर ।
ब्रह्मादिक बांछत रहैं इन के पद की धूर ।।

अहाहा! देखौ, ये गोपी प्रेम-मंदिर की धुजा हैं। मंदिर में बिसेष ऊँचौ स्थान सिखर कौ होय है। सिखर के ऊपर कलसा होय है, कलसा के ऊपर चक्र होय है, चक्र के ऊपर धुजा होय है; परंतु धुजा के ऊपर कछु नहीं होय है। वो धुजा लहराय-फहराय कैं दूर ही ते कहैं है- ‘एरे पथिकौ, यह मंदिर है; यहाँ आऔ और श्रीहरि के दरसन करि नैन-मन सिराऔ, पाप नसाऔ और पुण्य कमाऔ। ऐसैं ही वे गोपी प्रेम-मंदिर की धुजा स्थान पै बिराजमान है कैं पुकारि-पुकारि कैं कहि रही हैं- ‘एरे संसार के जीवौ, यह ब्रज है, यहाँ आऔ। यह प्रेमकौ मंदिर है। प्रेम के देवी देवता श्री जुगलस्वरूप के दरसन करौ। प्रेम की ठाकुर यहीं है, प्रेम की उपासना यहीं है और प्रेम की सामग्री हू यहीं है। यातैं या प्रेमधाम में आऔ। यदि तुम्हारौ हृदय कारौ है तो यहाँ के कारे-गोरे रंग सौं ऊजरौ करि लेउ। और जो तुम्हारी धारना मैली है तौ यहाँ प्रेम की जमुनाधार ते पबित्र करि लेऔ। जो रुकि गई है तौ बहाय लेऔ। और सूखि गई है तौ सरसाय लेऔ। या श्रीबृंदाबन में प्रेम-नदी चारों ओर बहि रही है, तुम यामें गीता लगाय कै पाप-ताप ते रहित है जाऔ! गोपी टेरि-टेरि कैं कह रही हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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