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रास-लीला के समय पूज्य श्रीभाई जी विरचित ‘पद-रत्नाकर’ के उपयोग पद
(राग टोड़ी-तीन ताल)
- मेरे जीवन धन-प्यारे! मैं कब से तुम्हें बुलाऊँ।
- आओ नैनों के तारे! मैं चरण-कमल सहलाऊँ।।
- यसुमति मैया के बारे! मैं माखन तुम्हें खिलाऊँ।
- व्रजपति के परम दुलारे! मैं सुललित लाड़ लड़ाऊँ।।
- आओ नयनों के तारे।।
- हे सखा-प्राण-आधारे! मैं मनहर खेल खिलाऊँ।
- व्रज युवतिन प्राण-पियारे! मैं हिय-रस तुम्हें पिलाऊँ।।
- आओ नयनों के तारे।।
- राधा-आराधनवारे! मैं सरबस चरण चढ़ाऊँ।
- अर्पितकर तन-मन सारे! मैं तुम पर बलि-बलि जाऊँ।।
- आओ नयनों के तारे।।
- तुम रहो प्रेम-मतवारे! मैं प्रेम-सुधा ढलकाऊँ।
- तुम रहो न मुझसे न्यारे! मैं हिय में आय समाऊँ।
- आओ नयनों के तारे।।
- अनुपम सुषमा-श्री धारे। मोहन! मैं तुम्हें रिझाऊँ।
- हियकी सब जाननहारे। तुमसे मैं कहा छिपाऊँ।।
- आओ नयनों के तारे।।[1]
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