राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 289

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीचंद्रावली-लीला

मंगलाचरण

(श्लोक)

श्यामेति सुन्दरवरेति मनोहरेति कंदर्पकोटिललितेति सुनागरेति।
सोत्कण्ठमह्नि गृणती मुहुराकुलाक्षी सा राधिका मयि कदा नु भवेत्प्रसन्ना।।

अर्थ- जो दिवस-काल में ‘हे स्याम! हा सुंदरवर! हा मनोहर! हे कंदर्प-कोटि-ललित! अहो चतुर-सिरोमनि!’ ऐसें उत्कंठायुक्त सब्दन सौं बारंबार गान करें हैं, वे आकुल नयनी श्रीराधिका मोपै कब प्रसन्न होयँगी?

समाजी-

(दोहा)

एक समैं चंद्रावली रूप सखा कौ धार।
नंद-नँदन के मिलनि कौं आई राधा द्वार।।

चंद्रावली- (द्वार पै जाय कैं टेर लगावैं) अजी, कहूँ गोपाल है?
श्रीजी- [भीतर बुलवाय कैं बैठावैं; फिर ठाकुर जी सों पूछैं]
क्यों प्रीतम, कहा आप या सखा कूँ जानौ हौ?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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