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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीसिद्धेश्वरी-लीला
(श्लोक)
अर्थ- जिनके नयन-कटाच्छ सौं श्रीव्रजराजकुमार की मुरली हाथ सौं छुटि कें गिरि जाय है, मस्तक कौ मोर-मुकुट ढुलकि जाय है, अंग सौ पीतांबर खिसकि जाय है, यहाँ ताईं कि वे स्वयं हू मर्छित है जायँ हैं। अहा! कहा मैं कबहूँ ऐसी श्रीराधिका की प्रेम पूर्वक परिचर्य्या करूँगी?
(दोहा)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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