राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 259

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

मंगलाचरण

(श्लोक)

वेणुः करान्निपतितः स्खलितं शिखंड भ्रष्टं च पीतवसनं ब्रजराजसूनोः।
यस्याः कटाक्षशरपातविमूर्च्छितस्य तां राधिकां परिचरामि कदा रसेन।।

अर्थ- जिनके नयन-कटाच्छ सौं श्रीव्रजराजकुमार की मुरली हाथ सौं छुटि कें गिरि जाय है, मस्तक कौ मोर-मुकुट ढुलकि जाय है, अंग सौ पीतांबर खिसकि जाय है, यहाँ ताईं कि वे स्वयं हू मर्छित है जायँ हैं। अहा! कहा मैं कबहूँ ऐसी श्रीराधिका की प्रेम पूर्वक परिचर्य्या करूँगी?

समाजी-

(दोहा)

मोहन मन ऐसी भई, राधे-दरसन होय।
अस बिचारि ठाड़े भये प्यारी कौ मग जोय।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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