राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 1

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला

मंगलाचरण
(श्लोक)
कदा वा खेलन्तौ व्रजनगरवीथीषु हृदयं
हरन्तौ श्रीराधाव्रजपतिकुमारौ सुकृतिनः।
अकस्मात् कौमारे प्रकटनवकैशोरविभवौ
प्रपश्यन्पूर्णः स्यां रहसि परिहासादिनिरतौ।।

अर्थ- कहा कबहूँ मैं श्रीराधा और श्रीब्रजपति-कुमार कौ दरसन करि कैं पूर्णता कूँ प्राप्त होऊँगौ? जो काऊ समय व्रज-नगर की बीथी में खेलत फिरत एकांत पाय अचानक कुमार-अवस्था कूँ त्यागि कैं नव किसोरता के वैभव कूँ प्रगट करि दिव्य हास-परिहास मैं संलग्न है गये हैं एवं जो अपनी ऐसी प्रेम के लिए सौं सुकृती-जनन के हृदय कौ अपहरन करि रहे हैं।

(दोहा)
समाजी-

एक समय भांडीर बट सुतहि लिऐं नँद गोद ।
धेनु-निरीच्छन करन कौं पहुँचे अति मन मोद ।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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