योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 74

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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बारहवाँ अध्याय
द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट


आर्यावर्त में कौरवों और पाँचालों की लड़ाई इतनी प्रसिद्ध है कि एक छोटा बच्चा भी उसे भली-भाँति जानता है। वस्तुतः कौरव और पाँचाल दो जातियों के नाम थे, जो भारतवर्ष के उत्तर प्रान्त में शासन करती थीं। कुरु जाति की योग्य भूमि का नाम कुरुवन था और पांचालों के देश का नाम पांचाल ही था। यद्यपि दोनों जातियाँ एक ही वंश से थीं, पर दोनों में ऐसा विरोध था कि सदा आपस में लड़ती रहती थीं। पाण्डु पुत्र[1] और दुर्योधन इत्यादि ये सब कुरु वंश के राजकुमार थे और आपस में चचेरे भाई थे।

पाँचाल के राजा का नाम द्रुपद था जो राजकुमारी द्रौपदी का पिता था। दुर्योधन का पिता धृतराष्ट्र अन्धा होने से गद्दी पर नहीं बैठा। पाण्डु राज्य करता था। पाण्डु के मरने पर धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन गद्दी का दावेदार हुआ और इसकी सिद्धि के लिए वह पाण्डु पुत्रों की जान के पीछे पड़ा। यह विग्रह इतना बढ़ा कि धृतराष्ट्र ने पाण्डवों से कहा, वे कुछ काल के लिए विराट नगर में जाकर रहें। पाण्डवों ने जब इस बात को स्वीकार कर लिया तो दुर्योधन ने अपने एक मित्र विरोचन को इसलिए आगे भेज दिया, ताकि वह युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डवों के रहने के लिए लाख के एक घर का निर्माण करा दे जिसमें जब पाण्डव जाकर रहें तो किसी भी दिन या रात को उसमें आग लगा दी जाय और इस प्रकार सब-के-सब अंदर जल मरें। पर दुर्योधन की इस करतूत की खबर विदुर को मिल गई। उन्होंने अपने भतीजे युधिष्ठिर इत्यादि को इससे सूचित कर दिया और इसलिए सावधान होकर पाँचों पाण्डव आग लगने के पहले ही वहाँ से भाग निकले और ब्राह्मण का रूप धर छिपे-छिपे वन में विचरण करने लगे। इन्हीं दिनों में पांचाल की राजपुत्री द्रौपदी का स्वयंवर रचा गया था। इस उत्सव में आर्यावर्त के सब क्षत्रिय राजा-महाराजा उपस्थित थे। श्रीकृष्ण भी अपने भाई बलराम के साथ आए हुए थे। एक ओर ब्राह्मण के वेष में पाण्डवगण भी बैठे हुए थे।

इस स्वयंवर में विजय का नियम यह रखा गया था कि तेल की एक कढ़ाई में एक चक्र पर मछली का चित्र बना था। वह मछली घूमती थी। इसकी परछाई तेल में देखकर जो अपने बाण से मछली के नेत्र में निशाना लगाएगा वही द्रौपदी का पति होगा। ऐसा जान पड़ता है कि उस समय धनुष विद्या में कर्ण और अर्जुन बड़े निपुण थे। इनकी समता कोई नहीं कर सकता था। अब उपस्थित राजाओं में से कोई भी इस नियम का पालन नहीं कर सका, तो कर्ण उठा, जिस पर द्रौपदी ने कहा कि यह सारथी का पुत्र है, इससे मैं विवाह नहीं कर सकती। यह सुनकर कर्ण अपना-सा मुँह लेकर बैठ गया। अंत मैं ब्राह्मणों की पंक्ति में से अर्जुन उठा और उठते ही इस फुरती से बाण मारा कि वह सीधा निशाने पर जा लगा। बस फिर क्या था, द्रौपदी ने आगे बढ़कर फूलों का हार उसके गले में पहना दिया। यह देखकर सारी सभा में कोलाहल मच गया। सारे राजा-महाराजा कहने लगे कि स्वयंवर में ब्राह्मण राजकन्या को नहीं वर सकता। इस संघर्ष में अर्जुन और भीम ने जो हाथ दिखाया, जिसमें श्रीकृष्ण ने उन्हें पहचान लिया और बीच में पड़कर यह निर्णय करा दिया कि इस ब्राह्मण ने नियमानुसार स्वयंवर जीता है, इसलिए न्याय और नियम के अनुसार द्रौपदी इसकी हो चुकी है। श्रीकृष्ण का प्रभाव इतना प्रबल था कि इस फैसले पर सब-के-सब चुप रहे और वहाँ से चल दिये।

अर्जुन अपने भाइयों सहित द्रौपदी को लेकर अपनी माता के पास गए। फिर कृष्ण भी वहाँ पहुँचे। युधिष्ठिर की माता कुन्ती, कृष्ण की बुआ थी। एक-दूसरे को पहचानकर तथा कुशल-क्षेम पूछने पर पाण्डु पुत्र कृष्ण से पूछने लगे, "आपने हमको किस तरह पहचाना?" इसके उत्तर में कृष्ण ने कहा कि अग्नि छिपाये नहीं छिप सकती। आपने जो विचित्र कार्य आज द्रुपद की सभा में किया है, उसी ने आप सबका परिचय दे दिया। पाण्डवों को छोड़कर और किसमें सामर्थ्य है जो ऐसा खेल खेलता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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