योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पाँचवाँ अध्याय
गोकुल से वृन्दावन गमन
ऐसा जान पड़ता है कि वृन्दावन को चरागाह तथा घास-पात की बहुतायत के विचार से पसन्द किया था। स्थानों का यह परिवर्तन प्रत्येक प्रकार से कृष्ण के अनुकूल पड़ा। अब उनकी वंशी की सुरीली गूँज से सारा वृन्दावन गूँजने लगा। आस-पास के वन-वाटिका का कोई स्थान कृष्ण और उनके साथियों से छिपा न रहा। जहाँ लहलहाती हरियाली देखते वहीं गायों को हाँक ले जाते। गौवें हरी घास से पेट भरतीं, आनन्दपूर्वक स्वच्छ वायु में अठखेलियाँ करतीं, उधर से लड़के किसी छाया में बैठ गाने बजाने का आनन्द लूटते। सन्ध्या को अपने पशुओं को हाँकते हुए अपने ग्राम में आ जाते। भोजन से छुट्टी पाने पर सारा गाँव, क्या बाल क्या वृद्ध, सभी एकत्र होते और कृष्ण की वंशी सुनते। युवा और युवतियाँ तो कृष्ण की वंशी पर ऐसे लट्टू थे कि जब वह वंशी बजाते तो इनके दल के दल एक वृत बनाकर उसके गिर्द नाचते, चक्कर लगाते और बाकी सब तमाशा देखते। जंगल में जब कभी कोई जंगली पशु मिल जाता तो सबके सब मिलकर उनका पीछा करते या तो उनको मार डालते या भाग जाते। ऐसी घटनाओं का पुराणों में प्रायः वर्णन किया है। हम उनमें से कुछ को यहाँ उद्धत करते हैं- (1) एक दिन का वर्णन है कि कृष्ण और बलराम अपने साथियों सहित गौवें चरा रहे थे। साथियों में से किसी लड़के ने कहा कि वन में एक जगह खजूर[2] का कुंज है, जिसमें बड़ी और मीठी खजूरें[3] लगी हुई हैं। पर उस कुंज के बीच में एक भंयकर पशु है जिसके भय से वहाँ कोई नहीं जाता। यह सुन कृष्ण और बलराम वहाँ जाने को तैयार हो गए और वहाँ ईंट और पत्थर चलाने लगे। ईंट और पत्थर की मार से वह पशु चौंका और भयभीत हो बाहर निकला।[4] जब वह सामने आया तो लड़कों ने उस पर ढेले बरसाना आरम्भ किया। यहाँ तक कि वह बिचारा चोटों से मर गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जंगलों में घूमने वाली ये जातियाँ यदि स्थिर होकर एक स्थान में बस जायें तो फिर वे अस्थिर जातियाँ न कहलायें, दूसरी जातियों के समान शहरों व देहातों की आबादियों में मिल जाएँ और न इस कदर पशु रख सकें जितने कि वे इस अवस्था में किसी खर्च के बगैर रख सकती हैं। ये जातियाँ इसी में प्रसन्न रहती हैं कि किसी स्थान पर सर्वदा के लिए न रहें। अपनी इच्छा से समय-समय पर घर बदला करती हैं। जब किसी एक जगह से उनका जी भर जाता है या वहाँ पर उनके पशुओं के लिए पूरी हरियाली नहीं रहती, तो वे उसी समय अपना डेरा उठा किसी दूसरी जगह झोंपड़ी डाल देती हैं। हरिवंशपुराण में इस स्थान व गृहों के बदलने का कारण यह लिखा है कि गोकुल में भेड़ियों का आतंक इतना बढ़ गया कि गोप लोगों ने अपने जान व माल को बचाने के लिए इस जगह को छोड़ देना आवश्यक समझा।
- ↑ वृक्ष-विशेष
- ↑ फल
- ↑ पुराणों में इस पशु का नाम धनुके है, और शकल गदहे की लिखी है।
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