योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 57

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम


हमने पिछला अध्याय श्रीकृष्ण को यशोदा की शैय्या पर लेटा छोड़कर समाप्त किया था। पाठकों को इस बात के जानने की लालसा होगी कि यशोदा का पति नंद कौन था। पुराणों से पता लगता है कि यह एक जाति विशेष का सरदार था, जिसे पुराणों में गोप लिखा है। इस जाति का कोई विशेष निवास-स्थान नहीं था। अब भी भारतवर्ष में ऐसी जातियाँ हैं, जो किसी जगह टिककर नहीं रहतीं वरन् अपने छकड़े और पशु लिए आज इस गाँव में दो-चार महीने बाद दूसरे गाँव में चली जाती हैं। इनमें से कई जातियाँ पशु रखती हैं और दूध मक्खनादि बेचती हैं और कोई-कोई दूसरा व्यवसाय भी करती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्ण के जन्म के समय कोई ऐसी ही जाति उस जंगल में[1] आकर ठहरी हुई थी, जहाँ वे अपने पशु चराते तथा दूध-मक्खन बेचते थे।

अतः श्रीकृष्ण के जन्म को गुप्त रखने के लिए किसी ऐसी जाति से सहायता लेना कुछ अधिक युक्ति युक्त जान पड़ता है, क्योंकि वहाँ पर श्रीकृष्ण के छिपाए जाने का बहुत कम संदेह हो सकता था। फिर कंस को भी यह शंका नहीं हो सकती थी कि इन रमते चारवाहों की मंडली में एक राजकुमार यों पाला जा रहा है। हम ऊपर कह आए है कि वसुदेव जी के दूसरे पुत्र बलराम भी गोकुल पहुँचा दिए गए और वह भी गोपियों के पास पालन[2] हेतु रखे गए थे। इस प्रकार दोनों भाई बलराम और कृष्ण को इकट्ठे रहने का अच्छा अवसर मिला। कृष्ण के बचपन के समय की बहुत-सी आश्चर्यजनक घटनाएँ वर्णन की जाती है। उनको परमेश्वर का अवतार मनाने वाले भक्तों ने उनके जीवन की सामान्य घटनाओं का भी ऐसी रँगीली भाषा में वर्णन किया है जो किसी विचारवान के लिए कदापि विश्वसनीय नहीं हो सकतीं। पर इनके भक्तों का तो यही आशय था।

सांसारिक सामान्य बातों के लिए अलौकिक शब्द प्रयोग नहीं हो सकते। अतः हर एक महापुरुष बहुत-सी ऐसी बातों का कर्ता वर्णन किया जाता है जो जनसाधारण की दृष्टि में आलौकिक तथा आश्चर्यजनक दीख पड़ती हैं। प्रत्येक महापुरुष के अनुयायी तथा भक्तों ने उसके बचपन की घटनाओं को इस प्रकार अलंकृत कर दिया है कि वे लौकिक से अलौकिक हो जाती है, पर विचारवान पुरुष अपनी विवेचना-शक्ति द्वारा उन अलौकिक व्यवहारों में से भी कुछ-न-कुछ सत्य अवश्य निकाल लेता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो यमुना पार स्थित था।
  2. अब भी बहुत लोग अपने बच्चों को पहाड़ी दाइयों के हवाले कर आते हैं, और उनके वय प्राप्त होने पर उन्हें अपने घर ले आते हैं।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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