योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 53

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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तीसरा अध्याय
श्रीकृष्णचन्द्र का जन्म


विष्णु पुराण में लिखा है कि जब देवकी का विवाह वसुदेव से हो चुका और वधू को वर के घर पहुँचाने के लिए रथ पर सवार कराया गया तो कंस उसके सारथी बने। चलते-चलते आकाशवाणी हुई, "रे मूर्ख, तू किस भ्रम में पड़ा हैं। जिस लड़की को तू रथ पर बैठाकर उसके श्वसुर के घर ले चला है उसी के उदर से एक पुत्र उत्पन्न होगा जिसके हाथ से तू मारा जाएगा।" यह बात कंस को आकाशवाणी अथवा किसी योगी पुरुष के मुख से विदित हो गई कि यदि मुझे अपने राजपाट में कुछ आशंका हो सकती है तो वह इस लड़की की संतान से ही, क्योंकि उसके दादा की संतान में से और कोई उसके स्वत्व में टाँग अड़ाने वाला नहीं था। इस विचार के उत्पन्न होते ही उसकी पापिष्ठ आत्मा बड़ी बेचैन हुई। उसे अपनी मृत्यु चारों ओर आँखों के सामने दीख पड़ने लगी। अब इसके अतिरिक्त उसे और कुछ न सूझा कि उस अज्ञान बालिका का अन्त कर दिया जाय जिससे उसकी ओर से कुछ शंका न रहे।

सत्य है, पापी अपने को बहुत बलवान और कठोर हृदय समझता है, पर वास्तव में उसका अभ्यन्तर पापों से खोखला होकर बलहीन हो जाता है। तनिक भय या उसकी छाया उसे भयभीत तथा शान्तिरहित कर देती है। उसके सारे पाप और सारी अनीतियाँ सदेह उसके सामने आ खड़ी होती हैं और नाना प्रकार से उसको डराने लगती हैं। वे आत्माएँ, जिन्होंने उससे किसी प्रकार की पीड़ा पाई है, भयानक रूप धारण कर उसके नेत्रों के सामने आ विराजती हैं और सोते-जागते उसे भय दिलाती हैं। उसकी अवस्था उस चोर के समान हो जाती है जो अपनी परछाई से डर उठता है या तनिक-सा खटका पाकर काँपने लगता है। आगे चलकर पुराण लेखक लिखता है, "कंस के चित्त में यह भाव उठते ही उसे विश्वास हो गया कि अब मेरा अन्त आ पहुँचा।" मृत्यु से बचने के लिए उसने यह उपाय सोचा कि जैसे भी हो सके देवकी का वध कर देना चाहिए। यह विचार आते ही उसने रथ को रोक दिया। खडग ले देवकी की ओर लपका और चाहता था कि एक ही हाथ में उसका सिर धड़ से जुदा कर दे, पर वसुदेव ने विनयपूर्वक हाथ जोड़कर उसे भगिनी वध के पाप से बचाया।

कंस क्रोधान्ध होकर स्त्री पर वार करने को उठा था, पर जब चारों ओर से हाहाकार मच गया और उसकी निन्दा होने लगी तो उसे बड़ी ग्लानि हुई। उसने वसुदेव से यह प्रतिज्ञा करा ली कि वह देवकी की होने वाली संतान को उसके हवाले कर दे। इसके बाद ही उसने स्त्री-वध का विचार त्यागा और देवकी सहित वसुदेव को अपने घर जाने की आज्ञा दी।[1] इस विषय में सब पुराण एक मत हैं कि वसुदेव ने निज प्रतिज्ञा-पालन में अपने छः पुत्र कंस के हवाले कर दिये और कंस भी ऐसा निर्दयी था कि उसने इन छहों को एक-एक कर मरवा डाला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस विषय में पुराणों में बड़ा मदभेद है। कोई पुराण कहता है कि यह आकाशवाणी हुई कि इस लड़की की संतान के द्वारा तेरा वध होगा। अन्य लिखते हैं कि यह ध्वनि हुई कि आठवीं संतान से तेरा विनाश होगा। कोई इस अगमवाणी को नारद जी के सिर मढ़ते हैं। पुराणों में जहाँ कहीं लड़ाई-झगड़े का काम लेना होता है वहाँ नारद जी की सहायता ढूँढ़ी जाती है। साधारण बोलचाल में लड़ाई कराने वाले व इधर की उधर पहुँचाने वाले को नारद मुनि कहते हैं। न जाने नारद जी को यह प्रमाण-पत्र किस कारण मिला, क्योंकि नारद एक विख्यात शास्त्रकार तथा महर्षि का नाम है। पुराण के लेखक का शायद यह तात्पर्य है कि किसी दुराचारी ने राजा को यह कुमन्त्रणा दी थी जिसमें कोई इसका वंशज राज्याधिकार का दावा न करे। अथवा इनके राजकीय विषयों में विरोध न करे।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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