योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 123

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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इकतीसवाँ अध्याय
अन्तिम दृश्य व समाप्ति


दूसरे दिन मद्रदेश के राजा शल्य सेनापति बनकर युद्ध में आये, परन्तु थोड़ी देर में ही खेत रहे। राजा के मरते ही सेना तितर-बितर हो गई।

दुर्योधन भाग गया और एक वन में जाकर छिप रहा था। परन्तु मृत्यु कब किसे अवसर देती है। पाण्डव उसका पीछा करते हुए वन में पहुँचे और उन्होंने दुर्योधन के स्थान का पता लगा लिया। युधिष्ठिर ने जोर से पुकारकर उससे कहा, "हे दुर्योधन! स्त्रियों की तरह छिपकर अपने वंश पर क्यों धब्बा लगाता है। बाहर आ, युद्ध कर। यदि तू हममें से एक को भी लड़ाई में मार डाले तो हम सब राजपाट तुझे सौंपकर जंगल को चले जाएँगे।"

युधिष्ठिर की इन बातों पर दुर्योधन के चित्त में फिर आशा की चिंगारी चमकी और उसने कहा, "मैं राज्य[1] के वास्ते तो अब लड़ना नहीं चाहता, परन्तु बदला लेने की आग मेरे हृदय में भड़क रही है। मैं अपने साथियों की मृत्यु का बदला लेने के लिए तुमसे लड़ने को उद्यत हूँ। राज्य तो मैंने तुझको दे दिया। जा अब इस वीरान जंगल पर तू राज्य कर, ऐसा राज्य दुर्योधन के काम का नहीं।" युधिष्ठिर ने फिर कहा, "हे दुर्योधन! मुझे दान की तरह तुझसे राज्य लेना स्वीकार नहीं है। अब मैदान में आकर युद्ध कर। यदि तू हममें से किसी एक को भी मार ले तो राज्य तेरा हुआ, और हम सब भाई पुनः वन में चले जाएँगे।" दुर्योधन ने कहा, "अच्छा! मुझे युद्ध स्वीकार है, परन्तु मैं गदा से युद्ध करूँगा। गदा से युद्ध करने की जिसमें सामर्थ्य हो वह मेरे सामने आ जाये। हे युधिष्ठिर, तेरे और अर्जुन जैसे दुर्बल लोगों से मैं क्या लडूँ? बेशक भीम मेरी टक्कर का है। मैं उससे लड़ता हूँ।" अन्ततः भीम और दुर्योधन मस्त हाथियों की तरह एक-दूसरे के साथ टकराने लगे। अन्त में भीम ने अवसर पाते ही दुर्योधन की जाँघ पर गदा का ऐसा प्रहार किया जिससे वह चकनाचूर होकर गिर पड़ा। उसके गिरते ही भीमसेन ने उसके सिर पर लात मारी। युधिष्ठिर और कृष्ण ने उसको ऐसा करने से रोका क्योंकि आर्य पुरुषों में परास्त हुए बैरी का अपमान करना बहुत बुरा समझा जाता है। दुर्योधन की इस हार से महाभारत युद्ध का अन्त हो गया। पाण्डव जीत करके अपने डेरों में वापस आये और अपनी विजय की खुशी में नाचरंग करने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यदि यह विचार लड़ाई से पहले दुर्योधन के चित्त में पैदा होता तो शायद महाभारत का विनाशकारी युद्ध न हुआ होता।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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