युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना

महाभारत गदा पर्व के अंतर्गत 30वें अध्याय में युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर के पास जाने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

व्याधों का अश्वत्थामा और दुर्योधन की बातें सुनना

संजय कहते हैं राजन! द्रोणकुमार अश्वत्थामा ने उस दुर्योधन से कहा- ‘महाराज! उठो, तुम्हारा कल्याण हो। हम शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे। ‘राजन! मैं अपने इष्टापूर्त कर्म, दान, सत्य और जय की शपथ खाकर कहता हूँ कि आज सोमकों का संहार कर डालूंगा। नरेश्वर! मैं समस्त पाञ्चालों का संहार किये बिना अपना कवच नहीं उतारूंगा, यह तुम से सच्ची बात कहता हूँ। मेरे इस कथन को तुम ध्यान से सुनो’।

वे इस प्रकार बात कर ही रहे थे कि मांस के भार से थके हुए बहुत से व्याध उस स्थान पर पानी पीने के लिये अकस्मात आ पहुँचे। उन्होंने वहाँ खड़े होकर उनकी एकान्त में होने वाली सारी बातें सुन लीं। परस्पर मिले हुए उन व्याधों ने दुर्योधन की भी बात सुनी। कुरुराज दुर्योधन युद्ध नहीं चाहता था तो भी युद्ध की अभिलाषा रखने वाले वे सभी महाधनुर्धर योद्धा उससे युद्ध छेड़ने के लिये बड़ा आग्रह कर रहे थे। राजन! उन कौरव महारथियों की वैसी मनोवृत्ति जानकर जल में ठहरे हुए राजा दुर्योधन के मन में युद्ध का उत्साह न देखकर और सलिल निवासी नरेश के साथ उन तीनों का संवाद सुनकर व्याध यह समझ गये कि ‘दुर्योधन इसी सरोवर के जल में छिपा हुआ है’।

व्याधों का आपस में वार्तालाप करना

पहले राजा दुर्योधन की खोज करते हुए पाण्डुकुमार युधिष्ठिर ने दैववश अपने पास पहुँचे हुए उन व्याधों से आपके पुत्र का पता पूछा था। राजन! उस समय पाण्डुपुत्र की कही हुई बात याद करके वे व्याध आपस में धीरे-धीरे बोले- ‘यदि हम दुर्योधन का पता बता दे तो पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर हमें धन देंगे। हमें तो यहाँ यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो गया कि राजा दुर्योधन इसी सरोवर में छिपा हुआ है। अतः जल में सोये हुए अमर्षशील दुर्योधन का पता बताने के लिये हम सब लोग उस स्थान पर चलें, जहाँ राजा युधिष्ठिर मौजूद हैं। ‘बुद्धिमान धनुर्धर भीमसेन को हम सब यह बता दें कि धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन जल में सो रहा है। ‘इससे अत्यन्त प्रसन्न होकर वे हमें बहुत धन देंगे। फिर हमें शरीर का रक्त सुखा देने वाले इस सूखे मांस को ढोकर व्यर्थ कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है?’।

इस प्रकार परस्पर वार्तालाप करके धन की अभिलाषा रखने वाले वे व्याध बड़े प्रसन्न हुए और मांस के बोझ उठाकर पाण्डव-शिविर की ओर चल दिये। महाराज! प्रहार करने में कुशल पाण्डवों ने अपना लक्ष्य सिद्ध कर लिया था; उन्होंने दुर्योधन को समरांगण में खड़ा न देख उस पापी के किये हुए छल-कपट का बदला चुकाकर वैर के पार जाने की इच्छा से उस संग्रामभूमि में चारों ओर गुप्तचर भेज रखे थे। धर्मराज के उन सभी गुप्तचर सैनिकों ने एक साथ लौट कर यह निवेदन किया कि ‘राजा दुर्योधन लापता हो गया है’। भरतश्रेष्ठ! उन गुप्तचरों की बात सुनकर राजा युधिष्ठिर घोर चिन्ता में पड़ गये और लंबी सांस खींचने लगे।[1]

व्याधों द्वारा दुर्योधन का पता भीम को बताना

भरतभूषण! नरेश! तदनन्तर जब पाण्डव खिन्न होकर बैठे हुए थे, उसी समय वे व्याध राजा दुर्योधन को अपनी आंखों देखकर तुरंत ही उस स्थान से हट गये और बड़े हर्ष के साथ पाण्डव-शिबिर में जा पहुँचे। द्वारपालों के रोकने पर भी वे भीमसेन के देखते-देखते भीतर घुस गये। महाबली पाण्डुपुत्र भीमसेन के पास जाकर उन्होंने सरोवर के तट पर जो कुछ हुआ था और जो कुछ सुनने में आया था, वह सब कह सुनाया।[2]

युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर के पास जाना

राजन! तब शत्रुओं को संताप देने वाले भीम ने व्याधों को बहुत धन देकर धर्मराज से सारा समाचार कहा। वे बोले-‘धर्मराज! मेरे व्याधों ने राजा दुर्योधन का पता लगा लिया है। आप जिसके लिये संतप्त हैं, वह माया से पानी बांध कर सरोवर में सो रहा है’। प्रजानाथ! भीमसेन का वह प्रिय वचन सुनकर अजात शत्रु कुन्तीकुमार युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ बड़े प्रसन्न हुए। महाधनुर्धर दुर्योधन को पानी से भरे सरोवर में घुसा सुन कर राजा युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके शीघ्र ही वहाँ से चल दिये।

प्रजानाथ! फिर तो हर्ष में भरे हुए पाण्डव और पाञ्चालों की किलकिलाहट का शब्द सब ओर गूंजने लगा। भरतभूषण नरेश! वे सभी क्षत्रिय सिंहनाद एवं गर्जना करने लगे तथा तुरंत ही द्वैपायन नामक सरोवर के पास जा पहुँचे। हर्ष में भरे हुए सोमक वीर रणभूमि में सब ओर पुकार-पुकार कर कहने लगे ‘धृतराष्ट्र के पापी पुत्र का पता लग गया और उसे देख लिया गया’। पृथ्वीनाथ! वहाँ शीघ्रतापूर्वक यात्रा करने वाले उनके वेगशाली रथों का घोर घर्घर शब्द आकाश में व्याप्त हो गया। भारत! उस समय अर्जुन, भीमसेन, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल-सहदेव, पाञ्चालराज कुमार धृष्टद्युम्न, अपराजित वीर शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, महारथी सात्यकि, द्रौपदी के पांचो पुत्र तथा पाञ्चालों में से जो जीवित बच गये थे, वे वीर दुर्योधन को पकड़ने की इच्छा से अपने वाहनों के थके होने पर भी बड़े उतावली के साथ राजा युधिष्ठिर के पीछे-पीछे गये। उनके साथ सभी घुड़सवार, हाथीसवार और सैकड़ों पैदल सैनिक भी थे। महाराज! तत्पश्चात प्रतापी धर्मराज युधिष्ठिर उस भयंकर द्वैपायनह्रद के तट पर जा पहुँचे, जिसके भीतर दुर्योधन छिपा हुआ था। उसका जल शीतल और निर्मल था। वह देखने में मनोरम और दूसरे समुद्र के समान विशाल था। भारत! उसी के भीतर मायाद्वारा जल को स्तम्भित करके दैवयोग एवं अदभुत विधि से आपका पुत्र विश्राम कर रहा था।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 30 श्लोक 18-38
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 30 श्लोक 39-60

सम्बंधित लेख

महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ


शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना | धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना | दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना | धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना | कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध | अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण | दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना | कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना | दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना | दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना | अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव | दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना | शल्य के वीरोचित उद्गार | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना | उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना | कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध | पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन | नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध | शल्य का पराक्रम | कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध | भीम के द्वारा शल्य की पराजय | भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध | दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध | दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध | युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध | मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध | अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध | दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध | शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध | पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध | भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय | युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय | भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध | युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध | सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय | मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन | पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा | भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार | दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना | धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध | सात्यकि द्वारा शाल्व का वध | सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय | दुर्योधन का पराक्रम | कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम | कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध | उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम | शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय | अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा | अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार | अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार | अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज | सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध | अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध | भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त | सहदेव के द्वारा उलूक का वध | सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध | संजय का क़ैद से छूटना | दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश | युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत | युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना | कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना | युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत | सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद | युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना | दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना | श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा | भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध | बलराम का आगमन और सम्मान | भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ | बलदेव की तीर्थयात्रा | प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा | उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा | त्रित मुनि का यज्ञ | त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना | वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन | नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन | बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश | सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति | मंकणक मुनि का चरित्र | औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा | रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा | आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति | अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा | यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन | वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति | ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति | सरस्वती नदी के जल की शुद्धि | अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन | कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य | कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी | स्कन्द का अभिषेक | स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन | स्कन्द की मातृकाओं का परिचय | स्कन्द देव की रणयात्रा | स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार | वरुण का अभिषेक | अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग | श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा | इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा | असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र | दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन | वृद्ध कन्या का चरित्र | वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन | ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन | प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा | बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना | भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना | बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना | समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी | दुर्योधन के लिए अपशकुन | भीमसेन का उत्साह | भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध | भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध | कृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना | दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना | भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार | युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना | युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना | क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना | युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत | पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति | कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर | कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान | पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना | अर्जुन के रथ का दग्ध होना | पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना | कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना | कृष्ण का पांडवों के पास लौटना | दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप | दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना | दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना | अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः