- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत बारहवें अध्याय में संजय ने युधिष्ठिर और माद्रीपुत्र नकुल-सहदेव के साथ शल्य का युद्ध का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
युधिष्ठिर और शल्य के मध्य युद्ध
संजय बोले- राजन! नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करके परस्पर प्रहार करने वाले महारथी एक दूसरे को लक्ष्य करके गर्जना करते थे। आपकी और पाण्डवों की सेना में मारो, बींध डालो, पकड़ों, प्रहार करो और टुकडे़-टुकडे़ कर डालो ये ही बातें सुनायी देती थीं। महाराज! तदनन्तर राजा शल्य ने महारथी धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर को मार डालने की इच्छा से पैंने बाणों द्वारा बींध डाला। महाराज! मर्मज्ञ कुन्तीकुमार ने शल्य के मर्मस्थानों को लक्ष्य करके हँसते हुए से चौदह नाराच चलाये और उनके अंगों में धँसा दिये। महाबली शल्य पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को रोककर उन्हें मार डालने की इच्छा से समरांगण में कंकपत्रयुक्त अनेक बाणों द्वारा उन पर क्रोधपूर्वक प्रहार करने लगे।
राजाधिराज! फिर उन्होंने सारी सेना के देखते-देखते झुकी हुई गाँठ वाले बाण से युधिष्ठिर को घायल कर दिया। तब महायशस्वी धर्मराज ने भी अत्यन्त कुपित हो कंक और मोर की पाँखों वाले पैने बाणों से मद्रराज शल्य को क्षत-विक्षत कर दिया। इसके बाद महारथी युधिष्ठिर ने सत्तर बाणों से चन्द्रसेन को, नव बाणों शल्य के सारथि को चौंसठ बाणों से द्रुमसेन को मार डाला। फिर सात्यकि को पच्चीस, भीमसेन को पाँच, तथा माद्री के पुत्रों को सौ तीखें बाणों से रणभूमि में घायल कर दिया। नृपश्रेष्ठ! इस प्रकार संग्राम में विचरते हुए राजा शल्य को लक्ष्य करके कुन्तीकुमार ने विषधर सर्पों के समान भयंकर एवं तीखे बाण चलाये। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने समरांगण में सामने खडे़ हुए शल्य की ध्वजा के अग्रभाग को एक भल्ल के द्वारा रथ से काट गिराया।
महात्मा पाण्डुपुत्र के द्वारा कटकर गिरते हुए उस ध्वज को हम लोगों ने वज्र के आघात से टूटकर नीचे गिरने वाले पर्वत-शिखर के समान देखा था। ध्वज नीचे गिर पड़ा और पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर सामने खडे़ हैं; यह देखकर मद्रराज शल्य को बड़ा क्रोध हुआ और वे बाणों की वर्षा करने लगे। अमेय आत्मबल से सम्पन्न क्षत्रियशिरोमणि शल्य वृष्टिकारी मेघ के समान क्षत्रियों पर बाणों की वर्षा कर रहे थे। सात्यकि, भीमसेन और माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल सहदेव- इनमें से प्रत्येक को पांच-पांच बाणों से घायल करके वे युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगे। महाराज! तदनन्तर हम लोगों ने पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर की छाती पर बाणों का जाल-सा बिछा हुआ देखा, मानों आकाश में मेघों की घटा घिर आयी हो। रणभूमि में कुपित हुए महारथी शल्य ने झुकी हुई गांठ-वाले बाणों से युधिष्ठिर की सम्पूर्ण दिशाओं और विदिशाओं को ढक दिया। उस समय अद्भुत पराक्रमी राजा युधिष्ठिर उस बाण समूह से वैसे ही पीड़ित हो गये, जैसे इन्द्र ने जम्भासुर को संतप्त किया था।
टीका टिप्पणी व संदर्भ
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