विरह-पदावली -सूरदास
गोपी-विरह-वर्णन सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है- सखी!) गोपाल के जाते ही सब चले गये, यह प्रियतम से निरन्तर रहने वाला प्रेम आधे पल भी नहीं रहा। चलने में धैर्य ने पहले (प्रथमता प्राप्त) की (वह पहिले गया) जैसा कि भले (चतुर) लोग करते हैं; और नेत्रों ने धैर्य को जाते देखा तो उसी क्षण (उनसे) आँसू चल पड़े। मेरे हस्त-पाद-कटकादि ने आँसुओं को चलते देखा तो वे सारे-के-सारे शिथिल (ढीले) हो गये। मन तो पहिले ही चल पड़ा था, (शेष) सब भी निर्मल भाव से चले गये; किंतु स्वामी के जाने पर भी एकमात्र प्राण नहीं चला और (नित्य) असहनीय (सहने के अयोग्य) वियोग के शूल से विद्ध होता रहता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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