विरह-पदावली -सूरदास
राग रामकली (सूरदास जी के शब्दों में माता यशोदा कह रही हैं) मेरा लाल क्या करता होगा ? (अरे पथिक!) जाकर (वसुदेव जी से) कहना कि उसे शीघ्र घर भेज दें, यहाँ उसके बिना गायें कौन दुहेगा ? (मोहन! अब) सब नगर-नारियों को छोड़ दो और अपने पहिले के लोगों का पालन करो, जिससे हम अपने चित्त में समझें कि तुमसे अधिक कोई हमारा हितैषी नहीं है। आज-आज तथा कल-कल (आज आता हूँ, कल आऊँगा) करते हुए तुमने संसार में अच्छा सुयश लिया, यहाँ (व्रज आने को) आज-कल (टालमटोल) ही करना चाहते हो और वहाँ राज्य अविचल कर दिया। (तुम्हारा) यह पर्दा (रहस्य) बहुत दिन चलता (कि तुम नंद के पुत्र हो) और दोनों (व्रज तथा मथुरा के लोगों) के लिए यह तुम्हारे सुख की) लूट शोभा (भी) देती, किंतु कन्हैया जन्म-जन्म की उमंगों के कारण अन्त गोकुल आयेंगे ही। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |