मेरैं हिय लागैं मनमोहन, लै गए री चित चोरि।
अबहिं इहिं मारग ह्वै निकसे, छबि निरखत तृन तोरि।।
मोर-मुकुट स्रवननि मनि-कुंडल, उर बनमाल, पिछोरि।
दसन चमक, अधरनि अरुनाई, देखत परी ठगोरि।।
ब्रज-लरिकन सँग खेलत डोलत, हाथ लिए चकडोरि।
सूर स्याम चितवत गए मो तन, तन-मन लियौ अँजोरि।।670।।