मुक्ति से तात्पर्य है कि "कर्म के बंधन से मोक्ष पाना"। यह स्थिति जीवन में ही प्राप्त हो सकती है।
- 'ब्रह्म वैवर्त पुराण' के अनुसार मुक्ति छ: प्रकार की होती है-
- सार्ष्टि अर्थात "समान ऐश्वर्य की प्राप्ति"।
- सालोक्य अर्थात "समान लोक की प्राप्ति"। (जीव भगवान के साथ उनके लोक में ही वास करता है।)
- सारूप्य अर्थात "समान रूप की प्राप्ति"। (जीव भगवान के साम्य[1] रूप लिए इच्छाएं अनुभूत करता है।)
- सामीप्य अर्थात "निकट रहने का सौभाग्य"। (जीव भगवान के सन्निध्य में रहते कामनाएं भोगता है।)
- साम्य अर्थात "समता की प्राप्ति"।
- लीनता अर्थात "आप में मिलकर एक हो जाना अथवा सायुज्य की प्राप्ति"। (भक्त भगवान में लीन होकर आनंद की अनुभूति करता है।)
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जैसे चतुर्भुज
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