माखन चोरी लीला

माखन की चोरी करते श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण जब चलने लगे तो पहली बार घर से बाहर निकले। ब्रज से बाहर भगवान की मित्र मंडली बन गयी। सुबल, मंगल, सुमंगल, श्रीदामा, तोसन आदि उनके मित्र बन गये थे।

सारी मित्रमण्डली मिलकर हर दिन माखन चोरी करने जाते। चोर मंडली के अध्यक्ष स्वयं माखन चोर श्रीकृष्ण थे। सब एक जगह इकट्टा होकर योजना बनाते कि किस गोपी के घर माखन की चोरी करनी है। आज ‘चिकसोले वाली’ गोपी की बारी थी।[1]

भगवान ने गोपी के घर के पास सारे मित्रों को छिपा दिया और स्वयं उसके घर पहुँच गये। द्वार खटखटाने लगे। भगवान ने अपने बाल और काजल बिखरा लिया। गोपी ने द्वार खोला तो श्रीकृष्ण को खड़े देखा। गोपी बोली- "अरे लाला! आज सुबह-सुबह यहाँ कैसे? कन्हैया बोले- "गोपी क्या बताऊँ! आज सुबह उठते ही मैया ने कहा लाला तू चिकसोले वाली गोपी के घर चले जाना और उससे कहना आज हमारे घर में संत आ गए हैं। मैंने तो ताजा माखन निकाला नहीं है। चिकसोले वाली तो बहुत सुबह ही ताजा माखन निकाल लेती है। उससे जाकर कहना कि एक मटकी माखन दे दो, बदले में दो मटकी माखन लौटा दूँगी।"

माखन चुराते बाल कृष्ण

गोपी बोली- "लाला! मैं अभी माखन की मटकी लाती हूँ और मैया यशोदा से कह देना कि लौटाने की आवश्यकता नहीं है। संतों की सेवा मेरी ओर से हो जायेगी। झट गोपी अंदर गयी और माखन की मटकी ले लाई। वह बोली- "लाला! ये माखन लो और ये मिश्री भी ले जाओ।" श्रीकृष्ण माखन लेकर बाहर आ गए और गोपी ने द्वार बंद कर लिया। श्रीकृष्ण ने झट अपने सारे सखाओं को पुकारा- श्रीदामा, मंगल, सुबल, जल्दी आओ, सब-के-सब झट से बाहर आ गए।[1]

भगवान बोले- "जिसके यहाँ चोरी की हो, उसके द्वार पर बैठकर खाने में ही आनंद आता है।" झट सभी गोपी के द्वार के बाहर बैठ गए। भगवान ने सबकी पत्तल पर माखन और मिश्री रख दी और बीच में स्वयं बैठ गए। सभी सखा माखन और मिश्री खाने लगे। माखन के खाने से पट-पट और मिश्री के खाने से कट-कट की ध्वनि हो रही थी। जब यह ध्वनि गोपी ने अंदर से सुनी तो वह सोचने लगी कि ये ध्वनि कहाँ से आ रही है। जैसे ही उसने द्वार खोला तो सारे सखाओं के साथ श्रीकृष्ण बैठे माखन खा रहे थे।

गोपी बोली- "क्यों रे कन्हैया! माखन संतों को चाहिए था या इन चोरों को?"

भगवान बोले- "देखो गोपी! ये भी किसी संत से कम नहीं हैं। सब-के-सब नागा संत हैं। देखो किसी ने भी वस्त्र धारण नहीं किये हुए हैं। तू इन्हें दंडवत प्रणाम कर।" गोपी बोली- "अच्छा कान्हा! इन्हें दंडवत प्रणाम करूँ। रुको, अभी अंदर से डंडा लेकर आती हूँ। गोपी झट से अंदर गयी और डंडा लेकर आयी।[1]

भगवान ने कहा- "मित्रों! भागो, नहीं तो गोपी पूजा कर देगी।"

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कृष्ण और चिकसोले वाली गोपी (हिन्दी) राधाकृपा। अभिगमन तिथि: 26 जुलाई, 2015।

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