महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 8 श्लोक 1-17

अष्‍टम (8) अध्याय: सौप्तिक पर्व

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महाभारत: सौप्तिक पर्व: अष्‍टम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


अश्वत्थामा के द्वारा रात्रि में सोये हुए पांचाल आदि समस्‍त वीरों का संहार तथा फाटक से निकलकर भागते हुए योद्धाओं का कृतवर्मा और कृपाचार्य द्वारा वध

धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! जब महारथी द्रोणपुत्र इस प्रकार शिविर की ओर चला, तब कृपाचार्य और कृतवर्मा भय से पीड़ित हो लौट तो नहीं गये? कहीं नीच द्वार-रक्षकों ने उन्‍हें रोक तो नहीं दिया? किसी ने उन्‍हें देख तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि वे दोनों महारथी इस कार्य को असह्य मानकर लौट गये हों? संजय! क्‍या उस शिविर को मथकर सोमकों और पाण्‍डवों की हत्‍या करके रात में अश्वत्थामा ने अपनी प्रतिज्ञा सफल कर ली? वे दोनों वीर पांचालों के द्वारा मारे जाकर धरती पर सदा के लिये सो तो नहीं गये? रणभूमि में मरकर दुर्योधन के ही उत्तम मार्ग पर तो नहीं गये? क्‍या उन दोनों ने भी वहाँ कोई पराक्रम किया? संजय! ये सब बातें मुझे बताओ।

संजय ने कहा- राजन! महामनस्वी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा जब शिविर के भीतर जाने लगा, उस समय कृपाचार्य और कृतवर्मा भी उसके दरवाजे पर जा खड़े हुए। महाराज! उन दोनों महारथियों को अपना साथ देने के लिये प्रयत्‍नशील देख अश्वत्‍थामा को बड़ी प्रसन्‍नता हुई। उसने उनसे धीरे से इस प्रकार कहा- 'यदि आप दोनों सावधान होकर चेष्‍टा करें तो सम्‍पूर्ण क्षत्रियों का विनाश करने के लिये पर्याप्‍त हैं। फिर इन बचे कुचे और विशेषत: सोये हुए योद्धाओं को मारना कौन बड़ी बात है? मैं तो इस शिविर के भीतर घुस जाऊँगा और वहाँ काल के समान विचरूँगा। आप लोग ऐसा करें जिससे कोई भी मनुष्‍य आप दोनों के हाथ से जीवित न बच सके, यही मेरा दृढ़ विचार है।'

ऐसा कहकर द्रोणकुमार पाण्‍डवों के विशाल शिविर में बिना दरवाजे के ही कूदकर घुस गया। उसने अपने जीवन का भय छोड़ दिया। वह महाबाहु वीर शिविर के प्रत्‍येक स्‍थान से परिचित था, अत: धीरे-धीरे धृष्टद्युम्न के खेमे में जा पहुँचा। वहाँ वे पांचाल वीर रणभूमि में महान पराक्रम करके बहुत थक गये थे और अपने सैनिकों से घिरे हुए निश्चिन्‍त सो रहे थे। भरतनन्‍दन! धृष्टद्युम्न के उस डेरे में प्रवेश करके द्रोणकुमार ने देखा कि पांचालकुमार पास ही बहुमूल्‍य बिछौनौं से युक्‍त तथा रेशमी चादर से ढकी हुई एक विशाल शय्‍या पर सो रहा है। वह शय्‍या श्रेष्ठ मालाओं से सुसज्जित तथा धूप एवं चन्‍दन चूर्ण से सुवासित थी।

भूपाल! अश्वत्‍थामा ने निश्चिन्‍त एवं निर्भय होकर शय्‍या पर सोये हुए महामनस्‍वी धृष्टद्युम्न को पैर से ठोकर मारकर जगाया। अमेय आत्‍मबल से सम्‍पन्‍न रणदुर्मद धृष्टद्युम्न उसके पैर लगते ही जाग उठा और जागते ही उसने महारथी द्रोणपुत्र को पहचान लिया। अब वह शय्‍या से उठने की चेष्‍टा करने लगा, इतने ही में महाबली अश्वत्‍थामा ने दोनों हाथ से उसके बाल पकड़कर पृथ्‍वी पर पटक दिया और वहाँ अच्‍छी तरह रगड़ा। भारत! धृष्टद्युम्न भय और निद्रा से दबा हुआ था। उस अवस्‍था में जब अश्वत्‍थामा ने उसे जोर से पटककर रगड़ना आरम्‍भ किया, तब उससे कोई भी चेष्‍टा करते न बना।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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