एकादश (11) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 49-62 का हिन्दी अनुवाद
अगाध बुद्धि वाले दयालु लोक पितामह ब्रह्मा जी अपने यहाँ आये हुए सभी महाभाग अतिथियों- देवता, दैत्य, नाग, पक्षी, यक्ष, सुपर्ण, कालेय, गन्धर्व तथा अप्सराओं एवं सम्पूर्ण भूतों से यथा योग्य मिलते हैं और उन्हें अनुगृहीत करते हैं। मनुजेश्वर! अमित तेजस्वी विश्वत्मा स्वयम्भू उन सब अतिथियों को अपना कर उन्हें सान्त्वना देते, उनका सम्मान करते, उनके प्रयोजन की पूर्ति करके उन सब को आवश्यकता तथा रुचि के अनुसार भोग सामग्री प्रदान करते हैं। तात भारत! इस प्रकार वहाँ आने-जाने वाले लोगों से भरी हुई वह सभा बड़ी सुखदायिनी जान पड़ती है। नृपश्रेष्ठ! वह सभा सम्पूर्ण तेज से सम्पन्न, दिव्य तथा ब्रह्मर्षियों के समुदाय से सेवित और पापरहित एवं ब्राह्मी श्री से उद्भासित और सुशोभित होती रहती है। वैसी उस सभा का मैंने दर्शन किया है। जैसे मनुष्य लोक में तुम्हारी यह सभा दुर्लभ है, वैसे ही सम्पूर्ण लोकों में तुम्हारी यह सभा दुर्लभ है, वैसे ही सम्पूर्ण लोकों में ब्रह्मा जी की सभा परम दुर्लभ है। भारत! ये सभी सभाएँ मैंने पूर्व काल से देव लोक में देखी हैं! मनुष्य लोक में तो तुम्हारी यह सभा ही सर्वश्रेष्ठ है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत लोकपाल सभाख्यान पर्व में ब्रह्म सभा वर्णन नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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