महाभारत विराट पर्व अध्याय 45 श्लोक 33-41

पंचचत्वारिंश (45) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पंचचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 33-41 का हिन्दी अनुवाद


उस समय उत्तर बोला - पाण्डवश्रेष्ठ! आप तो अकेले हैं, इन सम्पूर्ण अस्त्र शस्त्रों के परागामी बहुसंख्यक महारथियों को युद्ध में कैसे जीत सकेंगे ?। कुनती नन्दन! आप असहाय हैं और कौरवों के साथ बहुतेरे सहायक हैं। महाबाहो! यह सोचकर मैं आपके सामने भयभीत हो रहा हूँ।

यह सुनकर अर्जुन खिलखिलाकर हँस पड़े और बोले - ‘वीर! डरो मत! कौरवों की घोष यात्रा के समय जब मैंने महाबली गन्धर्वों के साथ युद्ध किया था, उस समय मेरा सखा या सहायक कौन था ? जब देवताओं और दानवों से भरे हुए उस अत्यनत भयंकर खाण्डव वन में मैं युद्ध कर रहा था, उस समय मेरा साथी कौन था ?। देवराज इन्द्र के लिये महाबली निवात कवच और पौलोम दैत्यों के साथ युद्ध करते समय मेरा कौन सहायक था ?। तात! द्रौपदी के स्वयंवर में जब मुण् अनेक राजाओं के साथ युद्ध करना पड़ा था, उस समय किसने मेरी सहायता की थी ?।

मैं गुरुवर द्रोणाचार्य?, इन्द्र, कुबेर, यमराज, वरुण, अग्निदेव, कृपाचार्य, लक्ष्मीपति श्रीकृष्ण तथा पिनाकपाणि भगवान् शंकर - इन सबका आश्रय पा चुका हूँ; फिर भला, इन महारथियों से युद्ध क्यो नहीं कर सकूँगा ? शीघ्र मेरा रथ हाँको; तुम्हारी मानसिक चिन्ता दूर हो जानी चाहिये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह के अवसर पर विराट कुमार उत्तर और अर्जुन बातचीत विषयक पैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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