महाभारत वन पर्व अध्याय 76 श्लोक 20-37

षट्सप्ततितम (76) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 20-37 का हिन्दी अनुवाद


‘शुभे! मेरे व्यवसाय (उद्योग) तथा तपस्या से कलियुग परास्त हो चुका है। अतः अब हमारे दु:खों का अन्त हो जाना चाहिये। विशाल नितम्ब वाली सुन्दरी! पापी कलियुग मुझे छाड़कर चला गया, इसी से मैं तुम्हारी प्राप्ति का उद्देश्य लेकर यहाँ आया हूँ। इसके सिवा, मेरे आगमन का दूसरा कोई प्रयोजन नहीं है। भीरु! कोई भी स्त्री कभी अपने अनुरक्त एवं भक्त पति को त्यागकर दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती है? जैसा कि तुम करने जा रही हो। विदर्भ नेरश की आज्ञा से सारी पृथ्वी पर दूत विचरते हैं और यह घोषणा कर रहे हैं कि दमयन्ती द्वितीय पति का वरण करेगी। दमयन्ती स्वेच्छाचारिणी है अपनी रुचि के अनुसार किसी अनुरूप पति का वरण कर सकती है, यह सुनकर ही राजा ऋतुपर्ण बड़ी उतावली के साथ यहाँ उपस्थित हुए हैं’।

दमयन्ती नल का यह विलाप सुनकर कांप उठी और भयभीत हो हाथ जोड़कर यह वचन बोली। दमयन्ती ने कहा- 'कल्याणमय निषध नरेश! आपको मुझ पर दोषारोपण करते हुए मेरे चरित्र पर संदेह नहीं करना चाहिये। (आपके प्रति अनन्य प्रेम के कारण ही) मैंने देवताओं को छोड़कर आपका वरण किया है। आपका पता लगाने के लिये चारों ओर ब्राह्मण लोग भेजे गये और वे मेरी कही हुई बातों को गाथा के रूप में गाते फिरे। राजन्! इसी योजना के अनुसार पर्णाद नामक विद्वान् ब्राह्मण अयोध्यापुरी में ऋतुपर्ण के राजभवन में गये थे। उन्होंने वहाँ मेरी बात उपस्थित की और वहाँ से आपके द्वारा प्राप्त हुआ ठीक-ठीक उत्तर वे ले आये। निषधराज! इसके बाद आपको यहाँ बुलाने के लिये मुझे यह उपाय सूझा (कि एक ही दिन के बाद होने वाले स्वयंवर का समाचार देकर ऋतुपर्ण को बुलाया जाये)।

नरेश्वर! पृथ्वीनाथ! मैं यह अच्छी तरह जानती हूँ कि इस जगत् में आपके सिवा दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो एक ही दिन में घोड़े जुते हुए रथ की सवारी से सौ योजन दूर तक जाने में समर्थ हो। महीपते! मैं मन से भी कभी कोई असदाचरण नहीं करती हूँ और इसी सत्य की शपथ खाकर आपके इन दोनों चरणों को स्पर्श करती हूँ। ये सदा गतिशील वायु देवता इस जगत् में निरन्तर विचरते हैं, अतः ये सम्पूर्ण भूतों के साक्षी हैं। यदि मैंने पाप किया है तो ये मेरे प्राणों का हरण कर लें। प्रचण्ड किरणों वाले सूर्य देव समस्त भुवनों के ऊपर विचरते हैं, (अतः वे भी सबके शुभाशुभ कर्म देखते रहते हैं)। यदि मैंने पाप किया है तो ये मेरे प्राणों का हरण कर लें। चित्त के अभिमानी देवता चन्द्रमा समस्त प्राणियों के अन्तःकरण में साक्षी रूप से विचरते हैं। यदि मैंने पाप किया है तो वे मेरे प्राणों का हरण कर लें। ये पूर्वोक्त तीन देवता सम्पूर्ण त्रिलोकी को धारण करते हैं। मेरे कथन में कितनी सच्चाई है, इसे देवता लोग स्वयं स्पष्ट करें। यदि मैं झूठ बोलती हूँ तो देवता मेरा त्याग कर दें।'

दमयन्ती के ऐसा कहने पर अन्तरिक्ष लोक से वायु देवता ने कहा- ‘नल! मैं तुमसे सत्य कहता हूं, इस दमयन्ती ने कभी कोई पाप नहीं किया है। राजन्! दमयन्ती ने अपने शील की उज्ज्वल निधि को सदा सुरक्षित रखा है। हम लोग तीन वर्षों तक निरन्तर इसके रक्षक और साक्षी रहे हैं।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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