महाभारत वन पर्व अध्याय 287 श्लोक 1-17

सप्तशीत्यधिकद्वशततम (287) अध्‍याय: वन पर्व (रामोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्तशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


कुम्भकर्ण, वज्रवेग और प्रमाथी का वध

मार्कण्डेय जी कहते हैं- युधिष्ठिर! सेवकों सहित अपने नगर से निकलकर कुम्भकर्ण ने अपने सामने खड़ी हुई वानर सेना को देखा, जो विजय के उल्लास से सुशोभित हो रही थी। फिर जब उसने भगवान श्रीराम के दर्शन की इच्छा से सेना में इधर-उधर दृष्टि डाली, तब उसे हाथ में धनुष लिये सुमित्रानन्दन लक्ष्मण खड़े दिखायी दिये। इतने में ही वानरों ने चारों ओर से आकर कुम्भकर्ण को घेर लिया और बहुत-से बड़े-बड़े पेड़ उखाड़कर उन्हीं के द्वारा उस पर प्रहार करने लगे। कुछ वानरों ने कुम्भकर्ण से प्राप्त होने वाले महान् भय की परवा न करके उसको नखों से पीड़ा देनी प्रारम्भ की। युद्ध की विभिन्न प्रणालियों द्वारा अनेक प्रकार से युद्ध करते हुय वानर सैनिक भाँति-भाँति के भयंकर आयुधों द्वारा राक्षसराज कुम्भकर्ण को चोट पहुँचाने लगे। वानरों के प्रहार करने पर वह जोर-जोर से हँसने और उन्हें पकड़-पकड़ कर खाने लगा। देखते-देखते बल, चण्डबल और वज्रबाहु नामक वानर उसके मुख के ग्रास बन गये।

राक्षस कुम्भकर्ण का यह दुःखदायी कर्म देखकर तार आदि वानर भयभीत हो जोर-जोर से चीत्कार करने लगे। अपने सैनिक तथा वानर यूथपतियों का वह उच्च स्वर से किया जाता हुआ चीत्कार सुनकर सुग्रीव निर्भय हो कुम्भकर्ण की ओर दौड़े। महामना कपिश्रेष्ठ सुग्रीव ने बड़े वेग से उछलकर एक शालवृक्ष के द्वारा कुम्भकर्ण के मस्तक पर बलपूर्वक प्रहार किया। कपिश्रेष्ठ सुग्रीव का हृदय महान् था। उनका वेग भी महान् था। उन्होंने कुम्भकर्ण के मस्तक पर पटक कर उस शाल वृक्ष को दो टूक कर डाला; तथापि वे उसे व्यथा न पहुँचा सके। शाल के स्पर्श से कुम्भकर्ण कुछ सावधान हो गया। उसने सहसा गर्जना करके सुग्रीव को दोनों हाथों से बलपूर्वक धर दबाया और अपने साथ ले लिया। राक्षस कुम्भकर्ण के द्वारा सुग्रीव का अपहरण होता देख मित्रों का आनन्द बढ़ाने वाले सुमित्रानन्दन वीरवर लक्ष्मण उसकी ओर दौड़े।

शत्रुवीरों का संहार करने वाले लक्ष्मण ने कुम्भकर्ण के सामने जाकर उसको लक्ष्य करके सुवर्णमय पंख से सुशोभित एक महावेगशाली महान् बाण चलाया। वह बाण उसके कवच को काटकर शरीर को छेदता हुआ रक्तरंजित हो धरती को चीरकर उसमें समा गया। इस प्रकार घाती छिद जाने के कारण महाधनुर्धर कुम्भकर्ण ने वानरराज सुग्रीव को तो छोड़ दिया और बड़े वेग से लक्ष्मण की ओर घूमकर कहा- ‘अरे! खड़ा रह, खड़ा रह। तत्पश्चात् एक बहुत बड़ी शिला लेकर वह सुमित्रानन्दन लक्ष्मण की ओर दौड़ा। तब लक्ष्मण ने भी बड़ी शीघ्रता के साथ तीखी घार वाले दो क्षुर नामक बाण मारकर अपनी ओर आते हुए कुम्भकर्ण की ऊपर उठी हुई दोनों भुजाओं को काट डाला। उनके कटते ही वह चार भुजाओं से युक्त हो गया। उन चार भुजाओं में भी उसने आयुध के रूप में अड़ी-बड़ी चट्टानें उठा लीं। यह देख सुतित्रानन्दन ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए फिर से पूर्वोक्त बाण मारकर उसकी उन चारों भुजाओं को भी काट दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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