महाभारत वन पर्व अध्याय 286 श्लोक 1-19

षडशीत्यधिकद्वशततम (286) अध्‍याय: वन पर्व (रामोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: षडशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


प्रहस्त और धूम्राक्ष के वध से दु:खी हुए रावण का कुम्भकर्ण को जगाना ओर उसे युद्ध में भेजना

मार्कण्डेय जी कहते हैं- युधिष्ठिर! तदनन्तर युद्ध में निष्ठुर पराक्रम दिखाने वाले प्रहस्त ने सहसा विभीषण के पास पहुँचकर गर्जना करते हुए उन पर गदा से आघात किया। भयानक वेग वाली उस गदा से आहत होकर भी बुद्धिमान महाबाहु विभीषण विचलित नहीं हुए। वे हिमालय के समान सुस्थिर भाव से खड़े रहे। तत्पश्चात् विभीषण ने एक विशाल महाशक्ति हाथ में ली, जिसमें शोभा के लिये सौ घंटियाँ लगी हुई थीं। उसे अभिमन्त्रित करके उन्होंने प्रहस्त के मस्तक पर दे मारा। विद्युत के समान वेग वाली उस महाशक्ति का वेगपूर्वक आघात होते ही राक्षस प्रहस्त का मस्तक धड़ से अलग हो गया और वह आँधी के द्वारा उखाड़े हुए वृक्ष की भाँति धराशायी दिखायी देने लगा। निशाचर प्रहस्त को युद्ध में मारा गया देख धूम्राक्ष बड़े वेग से वानरों की ओर दौड़ा। मेघों की काली घटा के समान भयानक दिखायी देने वाली उसकी सेना को आते देख सभी श्रेष्ठ वानर सहसा भयभीत होकर यूद्ध से भाग चले।

उन भयभीत प्रमुख वानरों को सहसा पलायन करते देख कपिकेसरी मारुतनन्दन हनुमान जी धूम्राक्ष का सामना करने के लिये आगे बढ़े। राजन्! पवन कुमार को युद्ध के लिये उपस्थित देख सभी वानर सब ओर से बड़ी उतावली के साथ लौट आये। फिर तो एक-दूसरे पर धावा बोलती हुई श्रीराम तथा रावण की सेनाओं का अत्यन्त भयंकर रोमांचकारी कोलाहल आरम्भ हो गया। उस घोर संग्राम में धरती पर रक्त की कीच जम गयी थी। इसी समय धूम्राक्ष अपने बाणों से उस वानर सेना को खदेड़ने लगा। तब शत्रुविजयी पवननन्दन हनुमान ने अपनी ओर आते हुए उस विशालकाय राचक्ष को बड़े वेग से धर दबाया। उन दोनों वानर तथा राक्षस वीरों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। वे इन्द्र हौर प्रह्लाद की भाँति युद्ध करके एक-दूसरे को जीतना चाहते थे। निशाचर धूम्राक्ष ने गदाओं तथा परिघों द्वारा कपिवर हनुमान जी को चोट पहुँचायी और हनुमान जी ने उन राक्षस पर तने और डालियों सहित वृक्षों से प्रहार किया। तदनन्तर मारुतनन्दन हनुमान जी ने अत्यन्त कुपित हो घोड़े, रथ और सारथि सहित धूम्राक्ष को मार डाला। राक्षसप्रवर धूम्राक्ष को मारा गया देख अन्य वानर तथा भालुओं को अपनी शक्ति पर विश्वास हुआ और वे उत्साहपूर्वक राक्षसों को मारने लगे।

विजय से उल्लसित हुए बलवान् वानर वीरों की मार खाकर राक्षस हताश हो गये और भय के मारे लंका की ओर भाग चले। मरने से बचे हुए उन निशाचरों ने भग्नमनोरथ होकर लंकापुरी में प्रवेश किया तथा रावण के समीप जाकर युद्ध का सब समाचार ज्यों का त्यों निवेदन कर दिया। उनके मुख से श्रेष्ठ वानर वीरों द्वारा युद्ध में सेना सहित प्रहस्त तथा महाधनुर्धर धूम्राक्ष के मारे जाने का वृत्तान्त सुनकर रावण बड़ी देर तक शोक भरे उच्छ्वास लेता रहा। फिर वह अपने श्रेष्ठ सिंहासन से उछलकर खड़ा हो गया और बोला- ‘अब यह कुम्भकर्ण के पराक्रम दिखलाने का समय आ गया है’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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