षट्चत्वारिंशदधिकद्विशततम (246) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: षट्चत्वारिंशदधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 23-27 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर राजा दुर्योधन ने उन धर्मपुत्र अजातशत्रु को प्रणाम करके नगर की ओर प्रस्थान किया। उस समय जिनकी इन्द्रियाँ काम न देती हों, उस रोगी की भाँति उसका हृदय व्यथा से विदीर्ण हो रहा था। उसे अपने कुकृत्य पर बडी लज्जा हो रही थी। दुर्योधन के चले जाने पर द्विजातियों से प्रशंसित होते हुए भाइयों सहित वीर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर वहां के समस्त तपस्वी मुनियों से घिरे रहकर देवताओं के बीच में बैठे हुए इन्द्र की भॉंति शोभा पाने और प्रसन्नतापूर्वक द्वैतवन में विहार करने लगे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत घोषयात्रापर्व में दुर्योधन को छुड़ाने से सम्बन्ध रखने वाला दो सौ छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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