महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 89 श्लोक 1-22

एकोननवतितम (89) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद


धृतराष्ट्र बोले- संजय! एकमात्र भीमसेन के द्वारा युद्ध में मेरे बहुत से पुत्रों को मारा गया देख भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य ने क्या किया? मेरे पुत्र प्रतिदिन नष्ट होते जा रहे हैं। सूत! मेरा तो ऐसा विश्वास है कि हम लोग सर्वथा अत्यन्त दुर्भाग्य के मारे हुए हैं। दुर्भाग्य के अधीन होने के कारण ही मेरे पुत्र हारते जा रहे हैं, विजयी नहीं हो रहे हैं। जहाँ भीष्म, द्रोण, महामना कृपाचार्य, वीरवर भूरिश्रवा, भगदत्त, अश्वत्थामा तथा युद्ध में पीठ न दिखाने वाले अन्य शूरवीरों के बीच में रहकर भी मेरे पुत्र प्रतिदिन संग्राम में मारे जाते है, वहाँ दुर्भाग्य के सिवा और क्या कारण हो सकता है? मूर्ख दुर्योधन ने पहले मेरी कही हुई बातों पर ध्यान नहीं दिया। तात! मैंने, भीष्म ने, विदुर ने तथा गान्धारी ने भी सदा हित की इच्छा से दुर्बुद्धि दुर्योधन को बार-बार मना किया परंतु मोहवश पूर्वकाल में हमारी यह बातें उसके समझ में नहीं आयी। उसी का यह फल अब प्राप्त हुआ है, जिससे भीमसेन समरांगण में कुपित होकर मेरे मूर्ख पुत्रों को प्रतिदिन यमलोक भेज रहा है।

संजय ने कहा- प्रभो! उस समय आपने जो विदुर जी के कहे हुए उत्तम एवं हितकारक वचन को नहीं सुना (सुनकर भी उस पर ध्यान नहीं दिया), उसी का यह फल प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा था कि आप अपने पुत्रों को जूआ खेलने से रोकिये। पाण्डवों से द्रोह न कीजिये। आपका हित चाहने वाले अन्यान्‍य सुहृदों ने भी आपसे वे ही बातें कही थीं; परंतु जैसे मरणासन्न पुरुष को हितकारक औषधि अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार आप उन हितकर वचनों को सुनना भी नहीं चाहते थे। अतः श्रेष्ठ विदुर ने जैसा बताया था, वैसा ही परिणाम आपके सामने आया है। विदुर, द्रोण, भीष्म तथा अन्य हितैषियों के हितकर वचनों को न मानने के कारण इन कौरवों का विनाश हो रहा है। प्रजापालक नरेश! यह सब तो पहले से ही प्राप्त है। अब आप जिस प्रकार युद्ध हुआ, उसका यथावत् समाचार सुनिये।

राजन्! उस दिन दोपहर होते-होते बड़ा भंयकर संग्राम होने लगा, जो सम्पूर्ण जगत के योद्धाओं का विनाश करने वाला था। वह सब मैं कह रहा हूँ सुनिये। तदनन्तर धर्मपुत्र युधिष्ठिर के आदेश से क्रोध में भरी हुई उनकी सारी सेनाएँ भीष्म पर ही टूट पडी। वे भीष्म को मार डालना चाहती थीं। महाराज! धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा महारथी सात्यकि इन सबने अपनी सेनाओं के साथ भीष्म पर ही आक्रमण कर दिया। राजा विराट और सम्पूर्ण सोमकों सहित द्रुपद ने संग्राम में महारथी भीष्म पर ही चढ़ाई की। नरेश्वर! केकय, धृष्टकेतु और कवचधारी कुन्तिभोज इन सबने अपनी सेनाओं के साथ भीष्म पर ही धावा किया। अर्जुन, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और पराक्रमी चेकितान ये दुर्योधन के भेजे हुए समस्त राजाओं पर चढ़ आये। शूरवीर अभिमन्यु, महारथी घटोत्कच तथा क्रोध में भरे हुए भीमसेन- इन सबने कौरवों पर धावा किया। राजन्! पाण्डवों ने तीन दलों में विभक्त होकर कौरवों का वध आरम्भ किया। इसी प्रकार कौरव भी रणभूमि में शत्रुओं का नाश करने लगे। द्रोणाचार्य ने श्रेष्ठ रथी सोमकों और सृंजयों को यमलोक भेजने के लिए क्रोधपूर्वक उनके ऊपर धावा बोल दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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