महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 73 श्लोक 1-17

त्रिसप्‍ततितम (73) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
विराट-भीष्म, अश्वतथामा-अर्जुन, दुर्योधन-भीमसेन तथा अभिमन्यु और लक्ष्‍मण के द्वन्‍द्वयुद्ध


संजय कहते हैं- राजन्! महारथी राजा विराट ने तीन बाण मारकर महारथी भीष्म को पीड़ित किया और तीन ही बाणों से उनके घोड़ों को भी घायल कर दिया। तब महा धनुर्धर महाबली तथा शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले शान्तनुनन्दन भीष्म ने सोने के पंख वाले दस बाण मारकर विराट को भी घायल कर दिया। भयंकर धनुष धारण करने वाले महारथी अश्वत्थामा ने अपने हाथ की दृढ़ता का परिचय देते हुए गाण्डीवधारी अर्जुन की छाती में छः बाणों से प्रकार किया। तब शत्रुवीरों का नाश करने वाले शत्रुसूदन अर्जुन ने अश्वत्थामा का धनुष काट दिया और उसे तीन तीखे बाणों द्वारा अत्यन्त घायल कर दिया। राजन्! युद्ध में अर्जुन के द्वारा अपने धनुष का काटा जाना अश्वत्थामा को सहन नहीं हुआ। उस वेगशाली वीर ने क्रोध से मूर्च्छित होकर तुरंत ही दूसरा धनुष लम्बे पैने बाणों द्वारा अर्जुन को और सत्तर श्रेष्ठ सायकों द्वारा श्रीकृष्ण को घायल कर दिया।

तब श्रीकृष्ण सहित अर्जुन ने क्रोध से लाल आँखें करके बारंबार गरम-गरम लंबी साँस खींचकर सोच-विचार करने के पश्चात् धनुष को बायें हाथ से दबाया। फिर उन शत्रुसूदन गाण्डीवधारी पार्थ ने कुपित हो झुकी हुई गाँठ वाले कुछ भयंकर बाण हाथ में लिये, जो जीवन का अन्त कर देने वाले थे। बलवानों में श्रेष्ठ अर्जुन ने उन बाणों द्वारा तुरंत ही समरागंण में अश्वत्थामा को घायल किया। वे बाण उसका कवच फाड़कर उस युद्ध स्थल से उसके शरीर का रक्त पीने लगे, किन्तु गाण्डीवधारी अर्जुन के द्वारा विदीर्ण किये जाने पर भी अश्वत्थामा व्यथित नहीं हुआ। राजन्! द्रोणकुमार तनिक भी विहल हुए बिना ही पूर्ववत्‌ समरभूमि में बाणों की वर्षा करता रहा और अपने महान्‌ व्रत की रक्षा की इच्छा से समरांगण में डटा रहा। अश्वत्थामा युद्ध भूमि में जो श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों का सामना करता रहा, उसके इस महान्‌कर्म की श्रेष्ठ कौरवों ने बड़ी प्रशंसा की।

भारत! अर्जुन ने भी अत्यन्त हर्ष में भरकर रणभूमि में सम्पूर्ण भूतों के सुनते हुए अश्वत्थामा की भूरि-भूरि प्रशंसा की। वह द्रोणाचार्य से उपसंहार सहित सुदुर्लभ अस्त्र-समुदाय की शिक्षा पाकर निर्भय हो सदा ही पाण्डव-सैनिकों के साथ युद्ध करता था। शत्रुओं को संताप देने वाले रथियों में श्रेष्ठवीर अर्जुन ने यह सोचकर कि अश्वत्थामा मेरे आचार्य का पुत्र है, द्रोण का लाड़ला बेटा है तथा ब्राह्मण होने के कारण भी विशेष रूप से मेरे लिये माननीय है; आचार्य पुत्र पर कृपा की। तदनन्तर श्वेत घोड़ों वाले कुन्ती कुमार पराक्रमी अर्जुन ने अश्वत्थामा को वहीं युद्ध स्थल में छोड़कर बड़ी उतावली के साथ आपके दूसरे सैनिकों का संहार करते हुए उनके साथ युद्ध आरम्भ किया। दुर्योधन ने शान चढ़ाकर तेज किये हुए गृध्र पंख युक्त अथवा सुवर्ण मय पंख वाले दस बाण मारकर महाधनुर्धर भीमसेन को बड़ी चोट पहुँचायी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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