पंचाषष्टितम (65) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: पंचाषष्टितम अध्याय: श्लोक 70-75 का हिन्दी अनुवाद
प्रभो! इस प्रकार आपने ही मेरी सृष्टि की है। आपसे अभिन्न होने के कारण मैं भी वासुदेवमय हूँ। लोकेश्वर! इसलिये याचना करता हूँ कि आप अपने आपको स्वयं ही (वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध) इन चार रूपों में विभक्त करके मानव-शरीर ग्रहण कीजिये। वहाँ सब लोगों के सुख के लिये असुरों का वध करके धर्म और यश का विस्तार कीजिये। अन्त में अवतार का उद्देश्य पूर्ण करके आप पुन: अपने पारमार्थिक स्वरूप से संयुक्त हो जायंगे। अमित पराक्रमी परमेश्वर! संसार में महर्षि और देवगण एकाग्रचित्त हो उन-उन लीलानुसारी नामों द्वारा आपके परमात्मस्वरूप का गान करते रहते हैं। सुबाहो! आप वर दायक प्रभु का ही आश्रय लेकर समस्त प्राणिसमुदाय आप में ही स्थित हैं। ब्राह्मण लोग आपको आदि, मध्य और अन्त से रहित, किसी सीमा के सम्बन्ध से शू्न्य (असीम) तथा लोकमर्यादा की रक्षा के लिये सेतु स्वरूप बताते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में विश्वोपाख्यान विषयक पैंसठवां अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|