महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-21

अष्टपंचाशत्तम (58) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


पाण्डव-वीरों का पराक्रम, कौरव-सेना में भगदड़ तथा दुर्योधन और भीष्म का संवाद


संजय ने कहा- राजन! तदनन्तर वे समस्त भूपाल समरभूमि में अर्जुन को देखते ही कुपित हो उठे और उन्होंने अनेक सहस्र रथियों के साथ उन्हें सब ओर से घेर लिया। भरतनन्दन! उन राजाओं ने रथसमूह द्वारा अर्जुन को सब ओर से वेष्टित करके उनके ऊपर अनेक सहस्र बाणों की वर्षा आरम्भ की। वे क्रोध में भरकर युद्ध में अर्जुन के रथ पर चमचमाती हुई शक्ति, दुःसह गदा, परिघ, प्रास, फरसे, मुद्गर और मूसल आदि अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगे। शलभों की श्रेणी के समान अस्त्र-शस्त्रों की उस वर्षा को अर्जुन ने स्वर्णभूषित बाणों द्वारा सब ओर से रोक दिया। राजेन्द्र! अर्जुन की वह अलौकिक फुर्ती देख देवता, दानव, गन्धर्व, पिशाच, नाग तथा राक्षस साधु-साधु (वाह-वाह) कहकर उनकी प्रशंसा करने लगे। उधर विशाल सेना से घिरे हुए सात्यकि और अभिमन्यु ने समर भूमि में सुबल के पुत्रों सहित गान्धार देशीय शूरवीरों पर आक्रमण किया। वहाँ जाते ही क्रोध में भरे हुए सुबलपुत्रों ने युद्धस्थल में नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों द्वारा सात्यकि के श्रेष्ठ रथ को रोषपूर्वक तिल-तिल करके काट डाला।

तब शत्रुओं को संताप देने वाल सात्यकि उस समय छिड़े हुए भयंकर संग्राम में अपने टूटे हुए रथ को त्यागकर तुरन्त ही अभिमन्यु के रथ पर जा बैठे। फिर एक ही रथ पर बैठे हुए वे दोनों वीर झुकी हुई गांठ वाले पैने बाणों से तुरंत ही सुबलपुत्र शकुनि की सेना का संहार करने लगे। इसी प्रकार एक ओर से आकर युद्ध के लिये सदा उद्यत रहने वाले द्रोणाचार्य और भीष्म ने कंकड़ पक्षी के पंखों से युक्त तीखे बाणों द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर की सेना का विनाश आरम्भ कर दिया। तब धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर तथा माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल-सहदेव ने समस्त सेनाओं के देखते-देखते द्रोणाचार्य की सेना पर धावा किया। जैसे पूर्वकाल में अत्यन्त भयंकर देवासुर-संग्राम हुआ था, उसी प्रकार वहाँ अत्यन्त भयानक रोमांचकारी युद्ध होने लगा। दूसरी ओर भीमसेन और घटोत्कच ने महान पराक्रम का परिचय देते हुए दुर्योधन की विशालवाहिनी को खदेड़ना आरम्भ किया।

उस समय दुर्योधन ने सामने आकर उन दोनों को रोक दिया। भारत! वहाँ हमने हिडिम्बापुत्र घटोत्कच का अद्भुत पराक्रम देखा। वह रणक्षेत्र में पिता से भी बढ़कर पुरुषार्थ प्रकट करते हुए युद्ध कर रहा था। क्रोध में भरे हुए पाण्डुनन्दन भीमसेन ने हंसते हुए से एक बाण मारकर अमर्षशील दुर्योधन की छाती छेद डाली। तब उस बाण के गहरे आघात से पीड़ित हो राजा दुर्योधन रथ की बैठक में बैठ गया और उसे मूर्छा आ गयी। राजन! उसे संज्ञाशून्य जानकर उसका सारथी बड़ी उतावरी के साथ उसे रणभूमि से बाहर ले गया। फिर तो उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब चारों ओर भागती हुई उस कौरव सेना पर तीखे बाणों का प्रहार करते हुए भीमसेन उसे पीछे से खदेड़ने लगे। दूसरी ओर से रथियों में श्रेष्ठ द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न तथा धर्मपुत्र युधिष्ठिर शत्रुसेना का विनाश करने वाले तीखे बाणों द्वारा द्रोणाचार्य और भीष्म के देखते-देखते कौरव सेना को पीड़ित करते हुए उसका पीछा करने लगे। महाराज! उस युद्ध स्थल में आपके पुत्र की भागती हुई सेना को महारथी द्रोण और भीष्म भी रोक न सके।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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