महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 45 श्लोक 1-23

पंचत्वारिंश (45) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: पंचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
उभय पक्ष के सैनिकों का द्वन्‍द्व युद्ध

संजय कहते है- प्रजानाथ! उस भयंकर दिन के प्रथम भाग में महाभयानक युद्ध होने लगा, जो राजाओं के शरीर का उच्छेद करने वाला था। कौरव और सृंजयवंशी वीर एक दूसरे को जीतने की इच्छा रखकर सिंहों के समान दहाड़ रहे थे। उनका यह सिंहनाद पृथ्वी और आकाश को प्रतिध्वनित कर रहा था। तल और शखों की ध्वनि के साथ सैनिकों का किलकिल शब्द गूँज उठा। एक दूसरे के प्रति गर्जना करने वाले शूरवीरों के सिंहनाद होने लगे। भरतश्रेष्ठ! तलत्राण के आघात से टकरायी हुई प्रत्यंचाओं के शब्द, पैदल सिपाहियों के पैरों की धमक, उच्च स्वर से होने वाली घोड़ों की हिनहिनाहट, हथियारों की झनझनाहट, एक दूसरे पर धावा करने वाले गजराजों के घण्टानाद- ये सब शब्द मिलकर ऐसी भयंकर आवाज प्रकट करने लगे, जो रोंगटे खडे़ कर देने वाली थी। उसी में रथों के पहियों की घरघराहट होने लगी, जो मेघों की विकट गर्जना के समान जान पड़ती थी। वे समस्त कौरव सैनिक अपने मन को कठोर बना प्राणों की बाजी लगाकर ऊँची ध्वजाएं फहराते हुए पाण्डवों पर धावा करने लगे।

राजन्! तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्म उस युद्धभूमि में कालदण्ड के समान भीषण धनुष लेकर अर्जुन की ओर दौडे़। उधर से महातेजस्वी अर्जुन भी अपना लोकविख्यात गाण्डीव धनुष लेकर युद्ध के मुहाने पर गंगानन्दन भीष्म की और दौडे़। वे दोनों कुरुकुल के सिंह थे और एक दूसरे को मार डालने की इच्छा रखते थे बलवान् भीष्म युद्ध में अर्जुन को घायल करके भी उन्हें विचलित न कर सके। राजन्! उसी प्रकार पाण्डुनन्दन अर्जुन भी भीष्म को युद्ध में हिला न सके। दूसरी और महाधुनर्धर सात्यकि ने कृतवर्मा पर धावा किया। उन दोनों में बड़ा भयंकर रोमांचकारी युद्ध हुआ। सात्यकि ने कृतवर्मा को और सात्यकि को भयंकर बाणों से घायल करते हुए एक दूसरे को बड़ी पीड़ा पहुँचायी। वे दोनों महाबली वीर और सर्वांग में बाणों से छिदे होने के कारण बसन्त ऋतु में खिले हुए दो पुष्पयुक्त पलाश वृक्षों के समान शोभा पा रहे थे।

अभिमन्यु ने महान धनुर्धर बृहद्वल के पास युद्ध किया। प्रजानाथ! कोसलनरेश वृहद्वल ने उस युद्ध में अभिमन्यु के ध्वज को काट दिया और सारथी को मार गिराया। महाराज! अपने रथ के सारथी के मारे जाने पर सुभद्राकुमार अभिमन्यु कुपित हो उठे और उन्होंने बृहद्वल को नौ बाणों से घायल कर दिया। तत्पश्चात् शत्रुमर्दन अभिमन्यु अन्य दो तीखे बाणों से बृहद्वल के ध्वज को काट डाला फिर एक बाण से उनके पृष्ठ रक्षक को दूसरे से सारथी को मार डाला। फिर वे दोनों अत्यन्त कुपित हो तीखे सायकों द्वारा एक दूसरे को बेधने लगे।

युद्ध में अभिमान प्रकट करने वाले, घमंडी और पहले वैरी आपके महारथी पुत्र दुर्योधन से भीमसेन युद्ध करने लगे। वे दोनों नरश्रेष्ठ महाबली वीर कुरुकुल के प्रधान व्यक्ति थे। उन्होंने समरांगण में एक दूसरे पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। भारत! वे दोनों महामनस्वी अस्त्रविद्या विद्वान् तथा विचित्र प्रकार से युद्ध करने वाले थे। उन्‍हें देखकर समस्त प्राणियों को बड़ा विस्मय हुआ। दुःशासन ने आगे बढ़कर मर्म स्थानों को विदीर्ण करने वाले अपने बहुसंख्यक तीखे बाणों द्वारा महाबली नकुल को घायल कर दिया। भारत! तब माद्रीकुमार नकुल ने भी हँसते हुए-से तीखे बाण मारकर दुःशासन के धनुष-बाण और ध्वज को काट गिराया और पच्चीस बाण मार उसे घायल कर दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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