महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 2 श्लोक 1-19

द्वितीय (2) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

Prev.png

महाभारत: भीष्म पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
वेदव्यासजी के द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि का दान तथा भयसूचक उत्पातों का वर्णन
  • वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर पूर्व और पश्चिम दिशा में आमने-सामने खड़ी हुई दोनों ओर की सेनाओं को देखकर भूत, भविष्‍य और वर्तमान का ज्ञान रखने वाले, सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं में श्रेष्‍ठ, भरतवंशियों के पितामह सत्यवतीनन्दन महर्षि भगवान व्यास, जो होने वाले भयंकर संग्राम के भावी परिणाम को प्रत्यक्ष देख रहे थे, विचित्रवीर्यनन्दन राजा धृतराष्‍ट्र के पास आये। वे उस समय अपने पुत्रों के अन्याय का चिन्तन करते हुए शोकमग्न एवं आर्त हो रहे थे। व्यासजी ने उनसे एकान्त में कहा- (1-3)
  • व्यासजी बोले- राजन! तुम्हारे पुत्रों तथा अन्य राजाओं को मृत्युकाल आ पहुँचा है। वे संग्राम में एक दूसरे से भिड़कर मरने-मारने को तैयार खडे़ हैं। (4)
  • भारत! वे काल के अधीन होकर जब नष्‍ट होने लगें, तब इसे काल का चक्कर समझकर मन में शोक न करना। (5)
  • राजन! यदि संग्रामभूमि में इन सबकी अवस्था तुम देखना चाहो तो मैं तुम्हें दिव्य नेत्र प्रदान करूं। वत्स! फिर तुम यहाँ बैठे-बैठे ही वहाँ होने वाले युद्ध का सारा दृश्‍य अपनी आंखों से देखो। (6)
  • धृतराष्‍ट्र ने कहा- ब्रह्मर्षिप्रवर! मुझे अपने कुटुम्बीजनों का वध देखना अच्छा नहीं लगता; परंतु आपके प्रभाव से इस युद्ध का सारा वृत्तान्त सुन सकूं, ऐसी कृपा आप अवश्‍य कीजिये। (7)
  • वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! व्यासजी ने देखा, धृतराष्‍ट्र युद्ध का दृश्‍य देखना तो नहीं चाहता, परंतु उसका पूरा समाचार सुनना चाहता है। तब वर देनें में समर्थ उन महर्षि ने संजय को वर देते हुए कहा- (8)
  • ‘राजन! यह संजय आपको इस युद्ध का सब समाचार बताया करेगा। सम्पूर्ण संग्रामभूमि में कोई ऐसी बात नहीं होगी, जो इसके प्रत्यक्ष न हो। (9)
  • ‘राजन! संजय दिव्य दृष्टि से सम्पन्न होकर सर्वज्ञ हो जायगा और तुम्हें युद्ध की बात बतायेगा। (10)
  • ‘कोई भी बात प्रकट हो या अप्रकट, दिन में हो या रात-में अथवा वह मन में ही क्यों न सोची गयी हो, संजय सब कुछ जान लेगा। (11)
  • ‘इसे कोई हथियार नहीं काट सकता। इसे परिश्रम या थकावट की बाधा भी नहीं होगी। गवल्गण का पुत्र यह संजय इस युद्ध से जीवित बच जायगा। (12)
  • भरतश्रेष्‍ठ! मैं इन समस्त कौरवों और पाण्‍डवों की कीर्ति का तीनों लोकों में विस्तार करूंगा। तुम शोक न करो। (13)
  • ‘नरश्रेष्‍ठ! यह दैव का विधान है। इसे कोई मेट नही सकता। अत: इसके लिये तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये। जहाँ धर्म है, उसी पक्ष की‍ विजय होगी।' (14)
  • वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर कुरुकुल के पितामह महाभाग भगवान व्यास पुन: धृतराष्‍ट्र से बोले- (15)
  • ‘महाराज! इस युद्ध में महान नर-संहार होगा; क्योंकि मुझे इस समय ऐसे ही भयदायक अपशकुन दिखायी देते हैं। (16)
  • ‘बाज,गीध, कौवे, कंक और बगुले वृक्षों के अग्रभाग पर आकर बैठते तथा अपना समूह एकत्र करते हैं। (17)
  • ‘ये पक्षी अत्यन्त आनन्दित होकर युद्धस्थल को बहुत निकट से आकर देखते हैं। इससे सूचित होता है कि मांसभक्षी पशु-पक्षी आदि प्राणी हाथियों और घोड़ों के मांस खायंगे। भय की सूचना देने वाले कंक पक्षी कठोर स्वर में बोलते हुए सेना के बीच से होकर दक्षिण दिशा की ओर जाते हैं। (18-19)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः