महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 190 श्लोक 1-18

नवत्‍यधिकशततम (190) अध्याय: द्रोण पर्व (द्रोणवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: नवत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
द्रोणाचार्य का घोर कर्म, ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्‍यागने का आदेश तथा अश्वत्‍थामा की मृत्‍यु सुनकर द्रोण का जीवन से निराश होना


संजय कहते है- राजन! तदनन्‍तर द्रोणाचार्य ने कुपित होकर रणभूमि में पांचालों का उसी प्रकार संहार आरम्‍भ किया, जैसे पूर्वकाल में इन्‍द्र नें दानवों का विनाश किया था। महाराज! द्रोणाचार्य के अस्त्र से मारे जाने वाले शत्रुदल के महारथी वीर बड़े धैर्यशाली थे, अत: वे रणभूमि में उनसे तनिक भी भयभीत न हुए। राजेन्‍द्र! युद्ध परायण पांचाल और सृंजय महारथी संग्राम में द्रोणाचार्य के साथ युद्ध करते हुए उन्‍हीं की ओर बढ़े आ रहे थे। बाणों की वर्षा से आच्‍छादित हो सब ओर से मारे जाने वाले पांचाल वीरों का भयंकर आर्तनाद सुनायी देने लगा। संग्राम में जब इस प्रकार महामनस्‍वी द्रोणाचार्य के द्वारा पाचांल सैनिक मारे जाने लगे और आचार्य द्रोण के अस्त्र लगातार बरसने लगे, तब पाण्‍डवों के मन में बड़ा भय समा गया।

महाराज! युद्ध स्‍थलों में घोड़ों और मनुष्‍य योद्धाओं का वह महान विनाश देखकर पाण्‍डवों की अपनी विजयी की आशा जाती रही। (वे सोचने लगे) जैसे ग्रीष्‍म-ऋतु में प्रज्‍वलित अग्नि सूखे जंगल या घास-फूस को जलाकर भस्‍म कर देती है, उसी प्रकार उत्‍तम अस्त्रों के ज्ञाता आचार्य द्रोण कहीं हम सब लोगों का संहार न कर डालें। रणभूमि में दूसरा कोई योद्धा उनकी ओर देखने में भी समर्थ नहीं है (युद्ध करना तो दूर की बात है) और धर्म के ज्ञाता अर्जुन कदापि उनके साथ (मन लगाकर) युद्ध नहीं करेंगे। कुन्‍ती के पुत्रों को द्रोणाचार्य के बाणों से पीड़ित एवं भयभीत देखकर उनके कल्‍याण में लगे हुए बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन से इस प्रकार कहा- पार्थ! ये द्रोणाचार्य सम्‍पूर्ण धनुर्धरों में श्रेष्‍ठ है, जब तक इनके हाथों में धनुष रहेगा, तब तक इन्‍हें यु‍द्ध में इन्‍द्र सहित सम्‍पूर्ण देवता भी किसी प्रकार जीत नहीं सकते। जब ये संग्राम में हथियार डाल देंगे, तभी मनुष्‍यों द्वारा मारे जा सकते हैं। अत: पाण्‍डवों! गुरु का वध करना उचित नहीं है इस धर्म भावना को छोड़कर उन पर विजय पाने के लिये कोई यत्र करो, जिससे सुवर्णमय रथवाले द्रोणाचार्य तुम सब लोगों का वध न कर डालें। मेरा विश्‍वास है कि अश्वत्‍थामा के मारे जाने पर ये युद्ध नहीं कर सकते। कोई मनुष्‍य उनसे जाकर कहे कि युद्ध में अश्वत्‍थामा मारा गया।

राजन! कुन्‍ती पुत्र अर्जुन को यह बात अच्‍छी नहीं लगी, किंतु अन्‍य सब लागों ने इस युक्ति को पसंद कर लिया। केवल कुन्‍ती नन्‍दन युधिष्ठिर बड़ी कठिनाई से इस बात पर राजी हुए। राजन! तब महाबाहू भीमसेन ने अपनी ही सेना के एक विशाल हा‍थी को गदा से मार डाला। उसका नाम था अश्वत्‍थामा। शत्रुओं को मथ डालने वाला वह भंयकर गजराज मालवा के राजा इन्‍द्र वर्मा का था। उसे मारकर भीमसेन लजाते-लजाते युद्ध स्‍थल में द्रोणाचार्य के पास गये और बड़े जोर से बोले- अश्वत्‍थामा मारा गया। अश्वत्‍थामा नाम से विख्‍यात हाथी मारा गया था, उसी को मन में रखकर भीमसेन ने उस समय वह झूठी बात कही थी। भीमसेन का वह अत्‍यन्‍त अप्रिय वचन सुनकर द्रोणाचार्य मन ही मन शोक से व्‍याकुल हो सन्‍न रह गये। जैसे पानी पड़ते ही बाल गल जाता है, उसी प्रकार उस दु:खद संवाद से उनका सारा शरीर शिथिल हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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