महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 37 श्लोक 1-19

सप्‍त‍त्रिंश (37) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍त‍त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


अभिमन्‍यु का पराक्रम, उसके द्वारा अश्‍मकपुत्र का वध, शल्‍य का मूर्च्छित होना और कौरव सेना का पलायन

  • संजय कहते हैं– राजन! अमित तेजस्‍वी सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु ने कौरव सेना को मार भगाया है, यह देखकर अत्‍यन्‍त क्रोध में भरा हुआ दुर्योधन स्‍वयं सुभद्राकुमार का सामना करने के लिये आया। (1)
  • उस युद्धस्‍थल में राजा दुर्योधन को अभिमन्‍यु की ओर लौटते देख द्रोणाचार्य ने समस्‍त योद्धाओं से कहा- 'वीरों! कौरव-नरेश की सब ओर से रक्षा करो।' (2)
  • बलवान अभिमन्‍यु हमारे देखते-देखते अपने लक्ष्‍यभूत राजा दुर्योधन को पहले ही मार डालेगा; अत: तुम सब लोग दौड़ों, भय न करो, शीघ्र ही कुरुवंशी दुर्योधन की रक्षा करो।' (3)
  • महाराज! तदनन्‍तर अस्त्र-शिक्षा में निपुण, बलवान, हितैषी और विजयशाली योद्धाओं ने[1] आपके वीर पुत्र को चारों ओर से घेर लिया; यद्यपि वे अभिमन्‍यु के भय से बहुत डरते थे। (4)
  • द्रोण, अश्वत्‍थामा, कृपाचार्य, कर्ण, कृतवर्मा, सुबलपुत्र शकुनि, बृहद्बल, मद्रराज शल्‍य, भूरि, भूरिश्रवा, शल, पौरव तथा वृषसेन-ये अभिमन्‍यु पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। इन्‍होंने महान बाण-वर्षा द्वारा अभिमन्‍यु को आच्‍छादित कर दिया। (5-6)
  • इस प्रकार उसे मोहित करके इन वीरों ने दुर्योधन को छुड़ा लिया। तब मानो मुंह से ग्रास छिन गया हो, यह मानकर अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु इसे सहन न कर सका। (7)
  • अत: अपनी भारी बाण-वर्षा से उन महारथियों को उनके सारथि और घोड़ों सहित युद्ध से विमुख करके सुभद्राकुमार ने सिंह के समान गर्जना की। (8)
  • मांस चाहने वाले सिंह के समान अभिमन्‍यु की वह गर्जना सुनकर अत्‍यन्‍त क्रोध में भरे हुए द्रोण आदि महारथी न सह सके। (9)
  • आर्य! तब उन महारथियों ने रथसेना द्वारा उसे कोष्‍ठ में आबद्ध-सा करके उसके ऊपर नाना प्रकार के चिह्न वाले समूह-के-समूह बाण बरसाने आरम्‍भ किये। (10)
  • परंतु आपके उस वीर पौत्र ने अपने पैने बाणों द्वारा शत्रुओं के उन सायक-समूहों को आकाश में ही काट दिया और उन सभी महारथियों को घायल भी कर डाला- यह एक अद्भूत-सी बात हुई। (11)
  • तब अभिमन्‍यु से चिढ़े हुए उन योद्धाओं ने विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों द्वारा किसी से परास्‍त न होने वाले सुभद्राकुमार को मार डालने की इच्‍छा रखकर उसे घेर लिया। (12)
  • भरतश्रेष्‍ठ! उस समय जैसे सब ओर से उछलते हुए समुद्र को तटभूमि रोक लेती है, उसी प्रकार आपके सैन्‍य-सागर को एकमात्र अर्जुनकुमार ने आगे बढ़ने से रोक दिया। (13)
  • उस समय एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए युद्धपरायण विपक्षी वीरों तथा अभिमन्‍यु में कोई भी युद्ध से विमुख नहीं हुआ। (14)
  • इस प्रकार वह भयंकर एवं घोर संग्राम चल रहा था। उसमें आपके पुत्र दु:सह ने नौ, दु:शासन ने बारह, शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने तीन और द्रोणाचार्य ने विषधर सर्प के समान भयंकर सत्रह बाणों से अभिमन्‍यु को बींध डाला। (15-16)
  • इसी प्रकार विविंशति ने सत्‍तर, कृतवर्मा ने सात, बृहद्बल ने आठ, शकुनि ने दो और राजा दुयोर्धन ने तीन बाणों से अभिमन्‍यु को घायल कर दिया। (17-18)
  • महाराज! उस समय धनुष हाथ में लिये प्रतापी अभिमन्‍यु ने जैसे नाच रहा हो, इस प्रकार सब ओर घुम-घुमकर उन सब महारथियों को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। (19)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रक्षा के लिये

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