महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 28 श्लोक 1-18

अष्‍टाविंश (28) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

Prev.png

महाभारत: द्रोण पर्व: अष्‍टाविंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

संशप्‍तकों का संहार करके अर्जुन का कौरव-सेना पर आक्रमण

  • संजय कहते हैं- महाराज! तदनन्‍तर द्रोण की सेना के समीप जाने की इच्‍छा वाले अर्जुन के सुवर्णभूषित एवं मन के समान वेगशाली अश्वों को भगवान श्रीकृष्‍ण ने बड़ी उतावली के साथ द्रोणाचार्य की सेना तक पहुँचने के लिये हाँका। (1)
  • द्रोणाचार्य के सताये हुए अपने भाइयों के पास जाते हुए कुरुश्रेष्‍ठ अर्जुन को भाइयों सहित सुशर्मा ने युद्ध की इच्‍छा से ललकारा और पीछे से उन पर आक्रमण किया। (2)
  • तब श्‍वेतवाहन अर्जुन ने अपराजित श्रीकृष्‍ण से इस प्रकार कहा, 'अच्‍युत! यह भाइयों सहित सुशर्मा मुझे पुन: युद्ध के लिये बुला रहा है।' (3)
  • 'तथा भगदत्‍त और उनके हाथी का पराक्रम उधर उत्तर दिशा की ओर अपनी सेना का नाश किया जा रहा है। मधुसूदन! इन संशप्‍तकों ने आज मेरे मन को दुविधा में डाल दिया है।' (4)
  • 'क्‍या मैं संशप्‍तकों का वध करूँ अथवा शत्रुओं द्वारा पीड़ित हुए अपने सैनिकों की रक्षा करूँ। इस प्रकार मेरा मन संकल्‍प-विकल्‍प में पड़ा है, सो आप जानते ही हैं। बताइये, अब मेरे लिये क्‍या करना अच्‍छा होगा।' (5)
  • अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान श्रीकृष्‍ण ने अपने रथ को उसी ओर लौटाया, जिस ओर से त्रिगर्तराज सुशर्मा उन पाण्‍डुकुमार को युद्ध के लिये ललकार रहा था। (6)
  • तत्‍पश्चात अर्जुन ने सुशर्मा को सात बाणों से घायल करके दो छुरों द्वारा उसके ध्वज और धनुष को काट डाला। (7)
  • साथ ही त्रिगर्तराज के भाइयों को भी छ: बाण मारकर अर्जुन ने उसे घोड़े और सारथि सहित तुरंत यमलोक भेज दिया। (8)
  • तदनन्‍तर सुशर्मा ने सर्प के समान आकृति वाली लोहे की बनी हुई एक शक्ति को अर्जुन के ऊपर चलाया और वसुदेवनन्‍दन श्रीकृष्‍ण पर तोमर से प्रहार किया। (9)
  • अर्जुन ने तीन बाणों द्वारा शक्ति तथा तीन बाणों द्वारा तोमर को काटकर सुशर्मा को अपने बाण-समूहों द्वारा मोहित करके पीछे लौटा दिया। (10)
  • राजन! इसके बाद वे इन्‍द्र के समान बाण-समूहों की भारी वर्षा करते हुए जब आपकी सेना पर आक्रमण करने लगे, उस समय आपके सैनिकों में से कोई भी उन उग्ररूपधारी अर्जुन को रोक न सका। (11)
  • तत्‍पश्चात जैसे अग्नि घास-फूँस के समूह को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन अपने बाणों द्वारा समस्‍त कौरव महारथियों को क्षत-विक्षत करते हुए वहाँ आ पहुँचे। (12)
  • परम बुद्धिमान कुन्‍तीपुत्र के उस असह्य वेग को कौरव सैनिक उसी प्रकार नहीं सह सके, जैसे प्रज्ञा अग्नि का स्‍पर्श नहीं सहन कर पाती। (13)
  • राजन! अर्जुन ने बाणों की वर्षा से कौरव सेनाओं को आच्‍छादित करते हुए गरुड़ के समान वेग से भगदत्‍त पर आक्रमण किया। (14)
  • महाराज! विजयी अर्जुन ने युद्ध में शत्रुओं की अश्रुधारा को बढ़ाने वाले जिस धनुष को कभी निष्‍पाप भरतवंशियों का कल्‍याण करने के लिये नवाया था, उसी को कपटद्यूत खेलने वाले आपके पुत्र के अपराध के कारण सम्‍पूर्ण क्षत्रियों का विनाश करने के लिये हाथ में लिया। (15-16)
  • नरेश्वर! कुन्‍तीकुमार अर्जुन के द्वारा मथी जाती हुई आपकी वाहिनी उसी प्रकार छिन्‍न–भिन्‍न होकर बिखर गयी, जैसे नाव किसी पर्वत से टकराकर टूक-टूक हो जाती है। (17)
  • तदनन्‍तर दस हजार धनुर्धर वीर जय अथवा पराजय के हेतुभूत युद्ध का क्रूरतापूर्ण निश्चय करके लौट आये। (18)

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः