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महाभारत: द्रोण पर्व: सप्तविंश अध्याय: श्लोक 21-31 का हिन्दी अनुवाद
- सैकड़ों भुजाएँ बाण, प्रत्यंचा और धनुष सहित कट गयीं। ध्वज, घोड़े, सारथि और रथी सभी धराशायी हो गये। (21)
- वृक्ष, पर्वत-शिखर और मेघों के समान विशाल एवं ऊँचे शरीर वाले, सजे-सजाये हाथी, जिनके सवार पहले ही मार दिये गये थे, अर्जुन के बाणों से आहत होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। (22)
- उस रणक्षेत्र में बहुत-से हाथी अर्जुन के बाणों से मथित होकर सवारों सहित प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उस समय उनके झूल चिथड़े-चिथड़े होकर दूर जा पड़े और उनके आभूषणों के भी टुकड़े-टुकड़े हो गये थे। (23)
- किरीटधारी अर्जुन के भल्ल नामक बाणों से ऋष्टि, प्रास, खड्ग, नखर, मुद्गर और फरसों सहित वीरों की भुजाएँ कट कर गिर गयी। (24)
- आर्य! योद्धाओं के मस्तक, जो बालसूर्य, कमल और चन्द्रमा के समान सुन्दर थे, अर्जुन के बाणों से छिन्न-भिन्न हो पृथ्वी पर गिर पड़े। (25)
- जब क्रोध में भरे हुए अर्जुन नाना प्रकार के प्राणनाशक बाणों द्वारा शत्रुओं का नाश करने लगे, उस समय आभूषणों से विभूषित हुई संशप्तकों की सारी सेना जलने लगी। (26)
- जैसे हाथी कमलों से भरे हुए सरोवर को मथ डालता है, उसी प्रकार अर्जुन को सारी सेना का विनाश करते देख सब प्राणी 'साधु-साधु' कहकर अर्जुन की प्रशंसा करने लगे। (27)
- इन्द्र के समान अर्जुन का वह पराक्रम देख भगवान श्रीकृष्ण अत्यन्त आश्चर्य में पड़कर हाथ जोड़े हुए बोले। (28)
- 'पार्थ! मेरा विश्वास है कि आज समर-भूमि में तुमने जो कार्य किया है, यह इन्द्र, यम और कुबेर के लिये भी दुष्कर है।' (29)
- 'इस संग्राम में मैंने सैकड़ों और हजारों संशप्तक महारथियों को एक साथ गिरते देखा है।' (30)
- इस प्रकार वहाँ खड़े हुए संशप्तक योद्धाओं में से अधिकांश का वध करके अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा-'अब भगदत्त के पास चलिये।' (31)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत संशप्तकवधपर्व में संशप्तकों का वधविषयक सताईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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