महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 24 श्लोक 1-20

चतुर्विंश (24) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: चतुर्विंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

धृतराष्‍ट्र का अपना खेद प्रकाशित करते हुए युद्ध के समाचार पूछना

  • धृतराष्‍ट्र ने कहा– संजय! भीमसेन आदि जो-जो नरेश युद्ध में लौटकर आये थे, ये तो देवताओं की सेना को भी पीड़ित कर सकते हैं। (1)
  • निश्चय ही यह मनुष्‍य दैव से प्रेरित होता है। सबके पृथक-पृथक सम्‍पूर्ण मनोरथ दैव पर ही अवलम्बित दिखायी देते हैं। (2)
  • जो राजा युधिष्ठिर दीर्घकाल तक जटा और मृगचर्म धारण करके वन में रहे और कुछ काल तक लोगों से अज्ञात रहकर भी विचरे हैं, वे ही आज रणभूमि में विशाल सेना जुटाकर चढ़ आये हैं, इसमें मेरे तथा पुत्रों के दैवयोग के सिवा दूसरा क्‍या कारण हो सकता है? (3-4)
  • निश्चय ही मनुष्‍य भाग्‍य से युक्‍त होकर ही जन्‍म ग्रहण करता है। भाग्‍य उसे उस अवस्‍था में भी खींच ले जाता है, जिसमें वह स्‍वयं नहीं जाना चाहता। (5)
  • हमने द्यूत के संकट में डालकर युधिष्ठिर को भारी क्‍लेश पहुँचाया था, परंतु उन्‍होंने भाग्‍य से पुन: बहुतेरे सहायकों को प्राप्‍त कर लिया है। (6)
  • सूत संजय! आज से बहुत पहले की बात है, मूर्ख दुर्योधन ने मुझसे कहा था कि पिताजी! इस समय केकय, काशी, कोसल तथा चेदिदेश के लोग मेरी सहायता के लिये आ गये हैं। दूसरे वंगवासियों ने भी मेरा ही आश्रय लिया है। तात! इस भूमण्‍डल का बहुत बड़ा भाग मेरे साथ है, अर्जुन के साथ नहीं है। (7-8)
  • उसी विशाल सेनासमूह के मध्‍य सुरक्षित हुए द्रोणाचार्य को युद्धस्‍थल में धृष्टद्युम्न ने मार डाला, इसमें भाग्‍य के सिवा दूसरा क्‍या कारण हो सकता है? (9)
  • राजाओं के बीच में सदा युद्ध का अभिनन्‍दन करने वाले सम्‍पूर्ण अस्‍त्र-विद्या के पारंगत विद्वान महाबाहु द्रोणाचार्य को कैसे मृत्यु प्राप्‍त हुई? (10)
  • मुझ पर महान संकट आ पहुँचा है। मेरी बुद्धि पर अत्‍यन्‍त मोह छा गया है। मैं भीष्‍म और द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर जीवित नहीं रह सकता। (11)
  • तात! मुझे अपने पुत्रों के प्रति अत्‍यन्‍त आसक्‍त देखकर विदुर ने मुझसे जो कुछ कहा था, मेरे साथ दुर्योधन को वह सब प्राप्‍त हो रहा है। (12)
  • यदि मैं दुर्योधन को त्‍यागकर शेष पुत्रों की रक्षा करना चाहूँ तो यह अत्‍यन्‍त निष्‍ठुरता का कार्य अवश्‍य होगा, परंतु मेरे सारे पुत्रों की तथा अन्‍य सब लोगों की भी मृत्‍यु नहीं होगी। (13)
  • जो मनुष्‍य धर्म का परित्‍याग करके अर्थपरायण हो जाता है, वह इस लोक से[1] भ्रष्‍ट हो जाता है और नीच गति को प्राप्‍त होता है। (14)
  • संजय! आज इस राष्‍ट्र का उत्‍साह भंग हो गया। प्रधान के मारे जाने से अब मुझे किसी का जीवन शेष रहता नहीं दिखायी देता। (15)
  • हमलोग सदा जिन सर्वसमर्थ पुरुषसिंहों का आश्रय लेकर जीवन धारण करते थे, उन धुरंधर वीरों के इस लोक से चले जाने पर अब हमारी सेना का कोई भी सैनिक कैसे जीवित बच सकता है। (16)
  • संजय! वह युद्ध जिस प्रकार हुआ था, सब साफ-साफ मुझसे बताओ। कौन-कौन वीर युद्ध करते थे, कौन किसको परास्‍त करते थे और कौन-कौन से क्षुद्र सैनिक भय के कारण युद्ध के मैदान से भाग गये थे। (17)
  • धनंजय अर्जुन के विषय में भी मुझे बताओ। रथियों में श्रेष्‍ठ अर्जुन ने क्‍या–क्‍या किया था। मुझे उनसे तथा शत्रु स्‍वरूप भीमसेन से अधिक भय लगता है। (18)
  • संजय! पाण्‍डव सैनिकों के पुन: युद्धभूमि में लौट आने पर मेरी शेष सेना के साथ जिस प्रकार उनका अत्‍यन्‍त भयंकर संग्राम हुआ था, वह कहो। (19)
  • तात! पाण्‍डव सैनिकों के लौटने पर तुम लोगों के मन की कैसी दशा हुई? मेरे पुत्रों की सेना में जो शूरवीर थे, उनमें से किन लोगों ने शत्रुपक्ष के किन वीरों को रोका था? (20)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में धृतराष्‍ट्रवाक्‍यविषयक चौबीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लौकिक स्‍वार्थ से

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