महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 134 श्लोक 1-18

एकत्रिंशदधिकशतकम (133) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकशतकम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


भीमसेन और कर्ण का युद्ध, धृतराष्ट्र पुत्र दुर्मुख का वध तथा कर्ण का पलायन

संजय कहते हैं- राजन! सब प्रकार से रथहीन एवं भीमसेन के द्वारा पुनः पराजित हुए कर्ण ने दूसरे रथ पर बैठकर पाण्डु कुमार भीमसेन को पुनः बींध डाला। जैसे दो विशाल गजराज अपने दाँतों के अग्रभागों द्वारा एक दूसरे से भिड़ गये हों, उसी प्रकार कर्ण और भीमसेन धनुष को पूर्णतः खीचकर छोड़े गये बाणों द्वारा एक दूसरे को चोट पहुँचाने लगे। तदनन्तर कर्ण ने अपने बाण समूहों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया। उसने बड़े जोर से गर्जना की और पुनः भीमसेन की छाती में चोट पहुँचायी। तब भीम ने सीधे जाने वाले दस बाणों से कर्ण को मारकर बदला चुकाया। तत्पश्चात झुकी हुई गाँठ वाले सत्तर बाणों द्वारा पुनः कर्ण को बींध डाला। राजन! भीमसेन ने कण की छाती में नौ बाणों द्वारा गहरी चोट पहुँचाकर एक तीखे बाण से उसकी ध्वजा को भी छेद दिया। तदनन्तर जैसे विशाल गजराजों को अंकुशों से और घोड़े को कोड़ों से पीटा जाय, उसी प्रकार कुन्ती कुमार भीम ने तिरेसठ बाणों द्वारा कर्ण को घायल कर दिया। महाराज! यशस्वी पाण्डु पुत्र के द्वारा अत्यन्त घायल होकर वीर कर्ण क्रोध से लाल आँखें करके अपने दोनों जबड़ों को चाटने लगा। राजन! तदनन्तर जैसे इन्द्र ने बलासुर पर वज्र चलाया था, उसी प्रकार उसने भीमसेन पर समस्त शरीर को विदीर्ण कर देने वाले बाण का प्रहार किया। रणक्षेत्र में सूत पुत्र के धनुष से छूटा हुआ वह विचित्र पंखों वाला बाण भीमसेन को विदीर्ण करके पृथ्वी को चीरता हुआ उसके भीतर समा गया।

तब क्रोध से लाल नेत्रों वाले महाबाहु भीमसेन ने चार वित्ते की बनी हुई वज्र के समान भयंकर तथा सुवर्णमय भुजबंद से विभूषित छः कोणों वाली भारी गदा उठाकर उसे बिना विचारे सूत पुत्र कर्ण पर चला दिया। जैसे कुपित हुए इन्द्र ने वज्र से असुरों का वध किया था, उसी प्रकार क्रोध में भरे भरतवंशी भीम ने अपनी उस गदा से अधिरथ पुत्र कर्ण के उन उत्तम घोड़ों को मार डाला, जो अच्छी तरह सवारी का काम देते थे। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात महाबाहु भीमसेन ने दो छुरों से कर्ण की ध्वजा काट कर अपने बाणों द्वारा उसके सारथि को भी मार डाला।

भारत! घोड़े और सारथि के मारे जाने तथा ध्वजा के गिर जाने पर कर्ण उस रथ को छोड़कर धनुष की टंकार करता हुआ दु:खी मन से वहाँ खड़ा हो गया। वहाँ हम लोगों ने राधा नन्दन कर्ण का अद्भुत पराक्रम देखा। रथियों में श्रेष्ठ उस वीर ने रथहीन होने पर भी अपने शत्रु को आगे नहीं बढ़ने दिया। राजन! नरश्रेष्ठ कर्ण को युद्ध स्थल में रथहीन खड़ा देख दुर्योधन ने अपने भाई दुर्मुख से कहा- ‘दुर्मुख! यह राधा नन्दन कर्ण भीमसेन के द्वारा रथ से वंचित कर दिया गया है। इस महारथी नरश्रेष्ठ वीर को रथ से सम्पन्न करो’। भरतनन्दन! दुर्योधन की यह बात सुनकर दुर्मुख बड़ी उतावली के साथ कर्ण के समीप पहुँचा और भीमसेन को अपने बाणों द्वारा रोका। संग्राम में सूत पुत्र के चरणों का अनुसरण करने वाले दुर्मुख को देखकर वायु पुत्र भीमसेन बड़े प्रसन्न हुए। वे अपने दोनों गलफर चाटने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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