महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 78 श्लोक 1-22

अष्टसप्ततितम (78) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद


कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन


धृतराष्ट्र ने पूछा– संजय! युद्धस्थल में भीमसेन के द्वारा जब कौरव सेनाएँ भगा दी गयीं, तब दुर्योधन, शकुनि, विजयी वीरों में श्रेष्ठ कर्ण, मेरे अन्य योद्धा कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा अथवा दुःशासन ने क्या कहा? मैं पाण्डुनन्दन भीमसेन का पराक्रम बड़ा अद्भुत मानता हूँ कि उन्होंने अकेले ही समरांगण में मेरे समस्त योद्धाओं के साथ युद्ध किया। शत्रुसूदन राधापुत्र कर्ण ने भी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सारा कार्य किया। संजय! वही समस्त कौरव योद्धाओं का कल्याणकारी आश्रय, कवच के समान संरक्षक, प्रतिष्ठा और जीवन की आशा था। अमित तेजस्वी कुन्तीपुत्र भीमसेन के द्वारा अपनी सेना को भगायी गयी देख अधिरथ और राधा के पुत्र कर्ण ने युद्ध में कौन-सा पराक्रम किया? संजय! यह सब वृतान्त मुझे बताओ, क्योंकि तुम कथा कहने में कुशल हो।

संजय बोला- महाराज! प्रतापी सूतपुत्र ने अपराह्न काल में भीमसेन के देखते-देखते समस्त सोमकों का संहार कर डाला। इसी प्रकार भीमसेन ने भी कौरवों की अत्यन्त बलवती सेना को मार गिराया। तत्पश्चात कर्ण ने शल्य से कहा- मुझे पांचालों के पास ले चलो। बुद्धिमान भीमसेन के द्वारा कौरव सेना को भगायी जाती देख रथी कर्ण ने सारथि शल्य से कहा- मुझे पांचालों की ओर ही ले चलो। तब महाबली मद्रराज शल्य ने महान वेगशाली श्‍वेत अश्वों को चेदि, पांचाल और करूषों की ओर हाँक दिया। शुत्र सेना को पीड़ित करने वाले शल्य ने उस विशाल सेना में प्रवेश करके जहाँ सेनापति की इच्छा हुई, वहीं बड़े हर्ष के साथ घोड़ों को रोक दिया।

प्रजानाथ! व्याघ्रचर्म से आच्छादित और मेघ गर्जन के समान गम्भीर घोष करने वाले उस रथ को देखकर पाण्डव तथा पांचाल सैनिक त्रस्त हो उठे। तदनन्तर उस महायुद्ध में फटते हुए पर्वत और गर्जते हुए मेघ के समान उस के रथ का गम्भीर घोष प्रकट हुआ। तत्पश्चात कर्ण ने कान तक खींचकर छोड़े गये सैकड़ों तीखे बाणों द्वारा पांडव सेना के सैकड़ों और हजारों वीरों का संहार कर डाला। संग्राम में ऐसा पराक्रम प्रकट करने वाले उस अपराजित वीर को महाधनुर्धर पाण्डव महारथियों ने चारों ओर से घेर लिया। शिखण्डी, भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, नकुल-सहदेव, द्रौपदी के पाँचों पुत्र और सात्यकि ने अपने बाणों की वर्षा द्वारा राधापुत्र कर्ण को मार डालने की इच्छा से उसे सब ओर से घेर लिया। उस समय शूरवीर नरश्रेष्ठ सात्यकि ने रणभूमि में बीस पैने बाणों द्वारा कर्ण के गले की हँसली पर प्रहार किया।

शिखण्डी ने पच्चीस, धृष्टद्युम्न ने सात, द्रौपदी के पुत्रों ने चौसठ, सहदेव ने सात और नकुल ने सौ बाणों द्वारा कर्ण को युद्ध में घायल कर दिया। तदनन्तर महाबली भीमसेन ने समरभूमि में कुपित हो राधापुत्र कर्ण के गले की हँसली पर झुकी हुई गाँठ वाले नब्बे बाणों का प्रहार किया। तब अधिरथपुत्र महाबली कर्ण ने हँसकर अपने उत्तम धनुष की टंकार की और उन सबको पीड़ा देते हुए उन पर पैने बाणों का प्रहार आरम्भ किया। भरत श्रेष्ठ! राधापुत्र कर्ण ने पाँच-पाँच बाणों से उन सब को घायल कर दिया। फिर सात्यकि का ध्वज और धनुष काटकर उनकी छाती में नौ बाणों का प्रहार किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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