महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 51 श्लोक 1-22

एकपंचाशत्तम (51) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन के द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध, भीम और कर्ण का युद्ध, भीम के द्वारा गजसेना, रथ सेना और घुड़सवारों का संहार तथा उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध

धृतराष्ट्र बोले- संजय! भीमसेन ने तो यह अत्यन्त दुष्कर्म कर डाला कि महाबाहु कर्ण को रथ की बैठक में गिरा दिया। सूत! दुर्योधन मुझसे बारंबार कहा करता था कि ‘कर्ण अकेला ही रणभूमि में सृंजयों सहित समस्त पाण्डवों का वध कर सकता हैं। परंतु उस दिन युद्धस्थल में राधापुत्र कर्ण को भीमसेन के द्वारा पराजित हुआ देखकर मेरे पुत्र दुर्योधन ने क्या किया।

संजय ने कहा- महाराज सूतपुत्र राधाकुमार कर्ण को महासमर में पराड़्मुख हुआ देख आपका पुत्र अपने भाइयों से बोला। 'तुम्हारा कल्याण हो। तुम लोग शीघ्र जाओ और राधा पुत्र कर्ण की रक्षा करो। वह भीमसेन के भय से भरे हुए संकट के अगाध महासागर में डूब रहा है।' राजा दुर्योधन की आज्ञा पाकर आपके पुत्र अत्यन्त कुपित हो भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उनके सामने गये, मानो पतंग आग के समीप जा पहुँचे हों। श्रुतर्वा, दुर्धर, क्राथ (क्रथन), विवित्सु, विकट (विकटानन), सम, निषंगी, कवची, पाशी, नन्द, उपनन्द, दुष्प्रधर्षण, सुबाहु, वातवेग, सुवर्चा, धनुर्ग्राह, दुर्मद, जलसन्ध, शल और सह ये महाबली और पराक्रमी आपके पुत्रगण, बहुसंख्यपक रथों से घिरकर भीमसेन के पास जा पहुँचे और उन्हें सब ओर से घेरकर खड़े हो गये। वे चारों ओर से नाना प्रकार के चिह्नों से युक्त बाणसमूहों की वर्षा करने लगे। नरेश्वर उनसे पीड़ित होकर महाबली भीमसेन ने पचास रथों के साथ आये हुए आपके पुत्रों के उन पचासों रथियों को शीघ्र ही नष्ट कर दिया। महाराज! तत्पश्चात कुपित हुए भीमसेन ने एक भल्ल से विवित्सु का सिर काट लिया। उसका वह कुण्डल और शिरस्त्राण सहित मस्तक पूर्ण चन्द्रमा के समान पृथ्वी पर गिर पड़ा।

प्रभो! उस शूरवीर को मारा गया देख उसके भाई समरभूमि में भयंकर पराक्रमी भीमसेन पर सब ओर से टूट पड़े। तब भयानक पराक्रम से सम्पन्न भीमसेन ने उस महायुद्ध में दूसरे दो भल्लों द्वारा रणभूमि में आपके दो पुत्रों के प्राण हर लिये। नरेश्वर! वे दोनों थे विकट (विकटानन) और सम। देवपुत्रों के समान सुशोभित होने वाले वे दोनों वीर आंधी के उखाड़े हुए दो वृक्षों के समान पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर लगे हाथ भीमसेन ने क्राथ (क्रथन) को भी एक तीखे नाराच से मारकर यमलोक पहुँचा दिया। वह राजकुमार प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। जनेश्वर! फिर आपके वीर धनुर्धर पुत्रों के इस प्रकार वहाँ मारे जाने पर भयंकर हाहाकार मच गया। उनकी सेना चंचल हो उठी। फिर महाबली भीमसेन ने समरांगण में नन्द और उपनन्द को भी यमलोक भेज दिया। तदनन्तर आपके शेष पुत्र रणभूमि में काल, अन्तक और यम के समान भयानक भीमसेन को देखकर भय से व्यााकुल हो वहाँ से भाग गये। आपके पुत्रों को मारा गया देख सूतपुत्र कर्ण के मन में बड़ा दु:ख हुआ। उसने हंस के समान अपने श्वेत घोड़ों को पुन: वही हंकवाया, जहाँ पाण्डुपुत्र भीमसेन मौजूद थे। महाराज! मद्रराज के हांके हुए वे घोड़े वेग से भीमसेन के रथ के पास जाकर उनसे सट गये। प्रजानाथ! महाराज! युद्धस्थल में कर्ण और भीमसेन का वह संघर्ष घोर, रौद्र और अत्यन्त भयंकर था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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