महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 50 श्लोक 1-21

पंचाशत्तम (50) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


कर्ण और भीमसेन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन


संजय कहते हैं- महाराज! पाण्डवों को आपकी सेना पर आक्रमण करते देख दुर्योधन ने सब ओर से सब प्रकार के प्रयत्नों द्वारा उन योद्धाओं को रोकने तथा अपनी सेना को भी स्थिर करने का प्रयत्न किया। भरतश्रेष्ठ! नरेश्वर! आपके पुत्र के बहुत चीखने-चिल्लाने पर भी भागती हुई सेना पीछे न लौटी। तदनन्तर व्यूह के पक्ष और प्रपक्ष भाग में खड़े हुए सैनिक, सुबलपुत्र शकुनि तथा सशस्त्र कौरव वीर उस समय रणक्षेत्र में भीमसेन पर टूट पड़े। उधर कर्ण ने भी राजा दुर्योधन और उसके सैनिकों को भागते देख मद्रराज शल्य ने कहा-‘भीमसेन के रथ के समीप चलो’। कर्ण के ऐसा कहने पर मद्रराज शल्य ने हंस के समान श्वेेत वर्णवाले श्रेष्ठ घोड़ों को उधर ही हांक दिया, जहाँ भीमसेन खड़े थे।

महाराज! संग्राम में शोभा पाने वाले शल्य से संचालित हो वे घोड़े भीमसेन के रथ के समीप जाकर पाण्डव सेना में मिल गये। भरतश्रेष्ठ! कर्ण को आते देख क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने उसके विनाश का विचार किया। उन्होंने वीर सात्यकि तथा द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न ने कहा ‘तुम लोग धर्मात्मा राजा युधिष्ठिर की रक्षा करो। वे अभी-अभी मेरे देखते-देखते किसी प्रकार महान प्राण संकट से मुक्त हुए हैं। ‘दुरात्मा राधापुत्र कर्ण ने दुर्योधन की प्रसन्नता के लिये मेरे सामने ही धर्मराज की समस्त युद्ध सामग्री को छिन्न-भिन्न कर डाला है। ‘द्रुपद कुमार! इससे मुझे बड़ा दु:ख हुआ है; अत: अब मैं उसका बदला लूंगा। आज रणभूमि में अत्यन्त घोर संग्राम करके या तो मैं ही कर्ण को मार डालूंगा या वही मेरा वध करेगा; यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ। ‘इस समय राजा को धरोहर के रुप में मैं तुम्हेंत सौंप रहा हूँ। तुम सब लोग निश्चित होकर इनकी रक्षा के लिये पूर्ण प्रयत्न करना’। ऐसा कहकर महाबाहु भीमसेन अपने महान सिंहनाद से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए सूत पुत्र कर्ण की ओर बढ़े।

युद्ध का अभिनन्दरन करने वाले भीमसेन को बड़ी उतावली के साथ आते देख मद्रदेश के स्वामी शक्तिशाली शल्य ने सूत पुत्र कर्ण से कहा। शल्य बोले- कर्ण! क्रोध में भरे हुए पाण्डुनन्ददन महाबाहु भीमसेन को देखो, जो दीर्घकाल से संचित किये हुए क्रोध को आज तुम्हारे ऊपर छोड़ने का दृढ़ निश्चय किये हुए हैं। कर्ण! अभिमन्यु तथा घटोत्कच राक्षस के मारे जाने पर भी पहले कभी मैंने इनका ऐसा रुप नहीं देखा था। ये इस समय कुपित हो समस्त त्रिलोकी को रोक देने में समर्थ हैं; क्योंकि प्रलयकाल के अग्नि के समान तेजस्वी रुप धारण कर रहे हैं। संजय कहते हैं- नरेश्वर! मद्रराज शल्य राधापुत्र कर्ण से ऐसी बातें कह ही रहे थे कि क्रोध से प्रज्वलित हुए भीमसेन उसके सामने आ पहुँचे। युद्ध का अभिनन्दन करने वाले भीमसेन को सामने आया देख हंसते हुए से राधापुत्र कर्ण ने शल्य से इस प्रकार कहा- ‘मद्रराज! प्रभो! आज तुमने भीमसेन के विषय में मेरे सामने जो बात कही है, वह सर्वथा सत्य है- इसमें संशय नहीं है। ‘ये भीमसेन शूरवीर, क्रोधी, अपने शरीर और प्राणों का मोह न करने वाले तथा अधिक बलशाली हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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